सोमवार, 27 जून 2016

रे परदेशिया मोन कोना क' रहै

मनीष झा 
                  रे  परदेशिया मोन कोना क' रहै 











 नहि लागै किछु नीक गाम सन 
मोन लगै छै तीतबिसरल सबटा अप्पन रीति
रे  परदेशिया मोन कोना ' रहै 
हो  परदेशिया मोन कोना ' रहै

गामक परिवेश जतय अछि माटि अप्पन भाषा रौ 
की जानै boss  कसैया बोइने धरि छनि नाता रौ

जहिये मोन सनकलनि छोड़ि कए - चलिए देबनि गाम 
रे   परदेशिया मोन कोना ' रहै  हो
रे  परदेशिया मोन कोना ' रहै

मायक आँचर फाटल जाए अछि, पूत बसै ओहि देश मे
ठोह पारि कए कानथि सजनी , सजना छथि परदेश मे 
कतेक कलंक लगएबह भाई हउ - नहि बिसरह तू नाम 
रे परदेशिया मोन कोना ' रहै , हो
रे  परदेशिया मोन कोना ' रहै

बे'चक बदला सिटी पिपही , ललका बरफ मिठका रै
दोस रौ ! चल ने गामहिं मे सब फेर सँ रहबै एक ठां रै
जन्हथिन्ह बाबा बैद्यनाथ -
करथिन्ह पेटक वएह ओरीयान

रे  परदेशिया मोन कोना ' रहै  हो
रे परदेशिया मोन कोना ' रहै
रे  परदेशिया मोन कोना ' रहै

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