मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

गजल

एके बेर ओ मारूक मुस्की मारि गेलै
हम नै बुझलियै आ ई करेजा हारि गेलै
चंचल मोन आसक दीप कहियो नै जरेलक
प्रेमक खड़रि माचिस ओकरा ओ बारि गेलै
बनलौं चित्र छी मदहोश बिनु पीने शराब
छातीमे हमर नैना अपन जे गाड़ि गेलै
दिन आ राति हुनके यादिमे जरि रहल छी हम
चर्चा सुनि हमर ओ देखियौ हँसि टारि गेलै
नै छै बचल कनिको प्रेम खिस्सामे हमर यौ
ओ 'ओम'क सिनेहसँ सजल पन्ना फाड़ि गेलै
2221-2221-2221-22 प्रत्येक पाँतिमे। तेसर शेरक पहिल पाँतिक अंतिम ह्रस्वकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि।

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