शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

SHRI HANUMAN CHALISA , BAJRANG BAN , HANUMAN STAKAM , BHAJAN KIRATAN

श्री हनुमान चालीसा / श्री बजरंग बाण/ भजन - कीर्तन




श्री हनुमान चालीसा 

       ॥दोहा॥
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार। 
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥



 ॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ वज्र ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन। तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा। विकट रुप धरि लंक जरावा॥
भीम रुप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं। अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिकपाल जहां ते। कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र योजन पर भानू लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट ते हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो शत बार पाठ कर सोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥
        ॥दोहा॥ 
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित ह्रदय बसहु सुर भूप॥
संकटमोचन  हनुमानाष्टकं
गोस्वामी तुलसीदास 

बाल समय रबि भक्षि लियो तब  तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात टारो।
देवन आनि करी बिनती तब 
छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु 
सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥
अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो 
जु 
बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब 
लाय सिया-सुधि प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥
रावन त्रास दई सिय को सब 
राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु 
जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥
बान लग्यो उर लछिमन के 
तब प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत 
तबै 
गिरि द्रोन सु बीर उपारो।
आनि संजीवन  हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥
रावन जुद्ध अजान कियो तब 
नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल 
मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु 
बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥
बंधु समेत जबै अहिरावन 
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों 
बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही 
अहिरावन सैन्य समेत सँहारो।
को नहिं जानत है जग में
कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥
काज कियो बड़ देवन के तुम 
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को 
जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो 
कुछ संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में 
कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥
दोहा
लाल देह लाली लसे अरू धरि लाल लँगूर।

बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर॥   

श्री बजरंग बाण
॥दोहा॥
 निश्चय प्रेम प्रतीति तेबिनय करै सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभसिद्ध करै हनुमान॥


॥चौपाई॥

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब  कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहुं उर अन्तर्यामी॥
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दु: करहुं निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर। सुर समूह समरथ भटनागर॥
 हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब  लावो॥
 ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा।  हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होउ हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दु: पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं। तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥
पाय परौं कर जोरि मनावों। यह अवसर अब केहि गोहरावों॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन धीर हनुमन्ता॥
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारीमर॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब  लावो॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दु: नाशा॥
चरण शरण करि जोरि मनावों। यहि अवसर अब केहि गोहरावों॥
उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई॥
 चं चं चं चं चपल चलन्ता।  हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
 हं हं हांक देत कपि चञ्चल।  सं सं सहम पराने खल दल॥
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो॥
यहि बजरंग बाण जेहि मारो। ताहि कहो फिर कौन उबारो॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की॥
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे॥
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा॥
॥दोहा॥
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजैसदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभसिद्ध करै हनुमान॥

श्री रामचन्द्र कृपालु

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्
नवकञ्ज लोचन, कञ्जमुख कर कञ्जपद कञ्जारुणम् ॥१॥
कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम्
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची नौमि जनक सुतावरम् ॥२॥
भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम्
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् ॥३॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम्
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम्
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादि खलदलगञ्जनम् ॥५॥
मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥
एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली


गोस्वामी तुलसीदास

भजन - कीर्तन १. 


हे दुःख भनजन  मारूती नंदन  -
सुनलो ---  मेरी पुकार  , पवन सूत  बिनती बारम्बार -
हे दुःख ---- मारुती नंदन ---  पवन सूत -----

अष्ट शिधि  नव निधि के  दाता -2, दुखियो के  तुम भाग्य विधाता  -
सिया राम के काज साम्बारे  --
  मेरा करो  उधरपवन सूत  बिनती बारम्बार -
हे दुःख ---- मारुती नंदन --- सुनलो ---   पवन सूत -----

अपरम्पार है शक्ति  तुम्हारे --    तुम पर रीझे  अवध विहारी ---
भाक्ति  भव्व से  ध्याऊ  तोहैं  - 
कर दुखो से पर - पवन सूत  बिनती बारम्बार -
हे दुःख ---- मारुती नंदन --- सुनलो ---  ,  पवन सूत -----

जपो  निरंतर  नाम तिहरा  , अब नहीं छोरु  तेरा  द्वारा -
राम भक्त  मोहे शरण में लीनो  -
भाव - सागर से तार  - पवन सूत  बिनती बारम्बार -
हे दुःख ---- मारुती नंदन --- सुनलो ---  ,  पवन सूत -----


हे दुःख ---- मारुती नंदन --- सुनलो ---  ,  पवन सूत -----

भजन - कीर्तन २. 


देही हरो  हनुमान महा  प्रभू  -- जो  कुछु संकट होए हमरे --
कोण सा संकट मोर गरीब को --   जो  तुमसे  है  जात टारो
जय जय हनुमान गोसाईं  , कृपा करो  महाराज ---
तन में  तुमरे शक्ति  विराजे  , मन भक्ति से  जीना --
जो जन तुमरी  शरण में  आये -
दुःख दरिद्र  हर लीना --- हनुमत
दुःख दरिद्र हर लीना हनुमात  ------
महावीर  तुम हम दुखियन को -
तुम हो गरीब   निबाज  हनुमत  ----
जय जय------  हनुमान गोसाईं --- ,
कृपा करो  महाराज ---
राम  लखन बैदेही  तुम  पर 
 सदा  रहे  हरि साये ----
ह्रृदय चीर  के राम सिया का -
 दर्शन  दिया  करायेहनुमत  -
दो कर जोर  अरज  हनुमंता -
कहियो प्रभु  से आजहनुमत -
जय जय ---   हनुमान गोसाईं  ,
   कृपा करो  महाराज ---
जय जय ---   हनुमान गोसाईं  ,
   कृपा करो  महाराज ---

भजन - कीर्तन ३.
(मंगल मूरति  मारुती  नंदन  सकल अमंगल मूल निकंदन -
पवन  तनय शांतन  हित करी  -ह्रृदय विराजत  अवध  विहारी )

जय जय जय बजरंग बलि  की ---
महावीर  हनुमान गोसई  -
तुम्हरी याद भली ---
जय जय जय बजरंग बलि  की ---

 साधु  संत के  हनुमत  प्यारेभक्त ह्रदय  श्री  राम  दुलारे -
राम रसायन  पास तम्हारे - सदा रहो तुम  राम  दुआरे -
तुम्हारे  कृपा से  हनुमत  वीरा -
सगरी  विपत  टल्ली   --- 
जय जय जय बजरंग बलि  की ---
महावीर  हनुमान गोसई  -
तुम्हरी याद भली --- जय  जय बजरंग बलि  की-   ---

तुम्हरी शरण महा शुख  दाई -- , जय जय जय  हनुमान गोसाई -
तुम्हरी  तुलसी गाये , - जग जननी सीता माह- मई  -
शिव - शक्ति  की तुमरे  ह्रदय -
जोत  महान  जल्ली  --------जय जय ----- बजरंग बलि  की
जय जय जय बजरंग बलि  की ---
महावीर  हनुमान गोसई  -
तुम्हरी याद भली ---
सिया  राम चरनन  मत   वाले --
भक्तन की तुम  बात  ना  टाले -
पाप अगिन से सब को बचाये -
घर  आये  बदल  कारे  , बिन  तेरे  अब  कौन  बचाये -
ऐसी  अंधी जो  चली -----  जय जय बजरंग बलि की --
जय जय जय बजरंग बलि  की ---
महावीर  हनुमान गोसई  -
तुम्हरी याद भली ---
जय जय  जय श्री राम -  जय जय  जय श्री राम -


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