गुरुवार, 5 नवंबर 2015

गजल

मोन वैह गलती बेर बेर करैए
चान केर चाहत आब फेर करैए
पूरलै कहाँ पहिलुक सबेरक सपना
आस नब किए एखनहुँ ढेर करैए
जीबि रहल मारल मोन भूमि धएने
सदिखने तँ ई जिनगी अन्हेर करैए
भाँग पीबि सनकल नाचि रहल मनुख ई
सनकि सनकि कोना ई घरेर करैए
मोन भरि छलै गप ओम केर हिया मे
ओहिना तँ नै गप सेर सेर करैए

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