मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

वाक कला पर आधारित नियमित श्रृख्लांक- 2.

     जँ बोली एहन हो जे सुनैवला के अगिला बोल सुनबाक लेल ठहरा लैक, शब्दक चयन एहन हो जे सामने वाला के अनचिन्हार नहि लगैक विषय श्रोताक इच्छानुकूल होइक एहनामे बजै वलाक बात ध्यानसँ सुनल जाइत छैक।
         हँ बजैवलाके सदिखन याद रखबाक चाही जे हमर श्रोता के अछि? कोन आयुवर्गक अछि ? ओकर की आवश्यकता छैक? हम जे किछु बाजि रहल छी तकर आवश्यकता सुनैवला के छैक वा नहि, हमर बजबाक प्रभाव सुनैवला पर केहन पड़ि रहल अछि , हमरा आगू की बजबाक चाही वा अन्ततः चुप भए जेबाक चाही ?जँ बजबासँ पहिने अइ सब प्रश्न पर विचार कए लेल जाय, तँ वक्ता, अपन सब बात, ठीकसँ राखि पबैत अछि। ओकर बात नीक जकाँ सुनल जाइत छैक कालक्रममे एहन वक्ता वाक कलाक एकटा सफल उदाहरण बनि जाइत अछि। वाक कलासँ जुड़ल जीवनक प्रत्येक कार्यक्षेत्रमे मोटामोटी इएह नियम कमोबेश लागू होइत होइत अछि।
    आऊ, क्रमिक रूपसँ हम सब एहि पर विचार करी। बोली यानी वाककलाक सॉफ्टवेयर, बोल यानी वाककलाक हार्डवेयर, विषय यानी वाककलाक कन्टेन्ट श्रोताक इच्छा यानी ऑडिएन्सक पूर्व आकलन पर ध्यान देलासँ प्रत्येक व्यक्ति एकटा सफल वक्ता बनि सकैत अछि।सबसँ पहिने श्रृंख्ला बोल बोली यानी वाककलाक हॉर्डवेयर सॉफ्टवेयर ध्यान केन्द्रित करत। पहिने बोली पर विचार करी।
         हमर अहाँक बोली अपन चारू कातक परिवेश पर निर्भर करैत अछि। एकटा अबोध नेना नौ माससँ लए तीन साढ़े तीन सालक बीच अपन बोलीक आरंभिक स्वरूप तय लैत अछि। 4 सालसँ 11 वर्षक बीच ओकर बोली लगभग स्थिर भए जाइत छैक। 12 सालसँ 18 सालक बीच एकटा किशोर वा किशोरीक बोली पूर्ण रूपसँ स्थिर भए जाइत अछि ओकर बाद बोलीमे बदलाव सामान्यतः जीवनक अंतिम सांस तक नहि होइत छैक।हारी- बीमारी वा दाँत टूटि गेलापर वा जीह संचालनमे कोनो अवरोध एलापर भले तात्कालिक रूपसं बोली प्रभावित हो मुदा जँ वाक कला यानी बोली उत्पादनमे लागल अंग स्वस्थ रहय तँ जीवनपर्यंत अहाँ अपन बोली टनगर, शनगर धरगर 
बनौने राखि सकैत छी
          बस थोड़ेक प्रयाससँ बोली बोल निखारल जा सकैत अछि। प्रभावशाली बनाओल जा सकैत अछि। जँ अहाँ प्रयासक लेल तैयार छी भरोस राखू एहि पोस्ट पोस्ट पठबै वलाक संग अपन अभ्यास जारी रखलासँ बहुत जल्दी अहाँक बोली सुनिकए बाट चलैत बटोही ठमकि जायत, कार्यस्थल पर अधिकारी वा अधीनस्थ समानरूपसँ प्रभावित होयताह। मात्र अपन मधुआयल बोलीसँ, अपन परिवारमे प्रेयसि होथि वा प्रियवर, माता-पिता वा संतान समाजमे अड़ोसी- पड़ोसी वा चिन्हार- अन्चिनहार सबकें मोहित करबामे अहाँ समर्थ भए सकैत छी।

     प्रतीक्षा करू अगिला पोस्टक जाहिमे बोल बोलीक हार्डवेयर सॉफ्टवेयर पर चर्चा होयत।

मनोज पाठक -

वाक कला पर आधारित नियमित श्रृख्लांक, १ 

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