सोमवार, 8 सितंबर 2014

दहेज धनक चास्नी

कविता @
दहेज धनक चास्नी भल्ही तु चाख।
मुद्दा ह्रदय मे मनबता तु राख।।
परिश्रम सं जुनी धन कमएबेतखने प्राणी
 तु महान कहेबेबेटा बेच बेच कमएले
 टाका दहेजक नाम पैर देले डाकाई केहन छौ
 तोहर शाखधनक चास्नी भल्ही तु चाख।
मुद्दा ह्रदय मे मनबता तु राख।।
कियो मारी रहल छे सीता के
कियो जारी रहल छे गीता के
हृदय विह्बल चीत चीत्कार
अकर्म्निष्ठ अपराधी के धिकार
जारी सीता के बनएले राखधनक
 चास्नी भल्ही तु चाख।
मुद्दा ह्रदय मे मनबता तु राख।।
चाहे गाम हुए कि शहर सगरो
मच्च्ल दहेजक कहरप्रताण्डित भ् रहल सीता
गीताजरी रहल अछ
सृष्टिक चीताबन्द अछ मृत समाजक वाक धनक
 चास्नी भल्ही तु चाख।
मुद्दा ह्रदय मे मनबता तु राख।।


Prabhat Ray Bhatt

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