मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

सरस्वती पूजा


एहि संसारमे जतेक शक्तिक प्रादुर्भाव भेल अछि ओ सब नारीरूपमे, प्रकृतिक अनुपम छटाक संग आ सदिखन वरदायिनी बनैत मातृशक्तिसँ सिंचित करैत मानवजातिलेल सदैव किछु शक्तिदायिनी बनि हरदम पूजनीय - तहिना माघ मासक अन्तघडी समूचा जगत जखन पियर-पियर फूलसँ सुशोभित नव-पियर फर धरैत जगत् केँ अपन नया प्राकृतिक शक्ति देबाक लेल तत्पर रहैत अछि ताहि समय प्रादुर्भाव होइछ ब्रह्माक विशेष अनुकम्पा आ विष्णुक आज्ञासँ एक विलक्षण चतुर्भुजा देवी, एक हाथमे वीणा, दोसरमे वरमुद्रा, तेसरमे पुस्तक आ चारिममे माला, वैह कहाइत छथि सरस्वती देवी - वैह प्रदान करैत छथि समूचा संसारकेँ विद्या आ ताहि हेतु हुनक पूजन कैल जाइछ मौसमक खास परिवर्तन दिवस यानि वसन्त पंचमीक दिन जाहि दिनसँ शुरू होइछ प्रकृतिक एक विशेष दिन - बस पीरे-पियर फूल, फल आ मँज्जरसँ सजल एहि वसन्त ऋतुक आगमन दिवसकेँ लोक नव विद्याक प्रादुर्भाव लेल पूजा दिवसरूपमे मनाबैत अछि। ई पूजा खास कय पूर्वोत्तर भारतवर्षमे मनायल जाइछ। 


ब्रह्माक प्रभावसँ जनित देवी सरस्वतीकेर प्रकट होइते समूचा संसारमे ध्वनि प्रकट होइछ, वैह वाणीरूपमे परिणति पबैत अछि, वीणासँ एहि ध्वनि ओ वाणीक प्राकट्यकेर इतिहास आइयो माँ शारदेक पूजा लेल प्रसिद्धि पबैत अछि आ एहि वसन्त पंचमीक दिन मिथिला खास तौरसँ सुशोभित रहैछ। कहबी मात्र नहि, सच्चाई सेहो एहि तरहक अछि जे सब तरहक मौसमक जननी आ पोषक समूचा संसारमे मात्र भारतवर्ष केर अनुपम भूमि मिथिलामे लोक दूइ देवी यानि लक्ष्मी आ पार्वतीक अवतार प्रत्यक्ष पौलनि तऽ तेसर शक्तिदात्री देवी सरस्वती भले कतहु अन्यत्र कोना रहि सकैत छलीह ताहि लेल एहि ठामक मानव व समस्त जीवमंडलमे ओ व्याप्त होइत अपन प्राकट्य प्रकट केने छथि। सरस्वती पूजा नहि सिर्फ मिथिलामे वरन् समस्त पूर्वी भारत जे आजुक बांग्लादेशरूपमे सेहो प्रकट अछि ताहि ठाम तक अपन प्रभावक्षेत्र बनबैत विशेष अनुकम्पाक बरसात केने छथि। 

ऋग्वेदमे कहल गेल अछि:- 

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। 

             अर्थात ‌ई परम चेतना थिकी। सरस्वती केर रूप मे यैह हमरा लोकनिक बुद्धि, प्रज्ञा आ मनोवृत्ति आदिकेर संरक्षिका थिकी। हमरा लोकनिमे जे आचार आर मेधा अछि तेकर आधार भगवती सरस्वती मात्र छथि। 

हिनक समृद्धि आ स्वरूप केर वैभव अद्भुत अछि। पुराणक अनुसार श्रीकृष्ण स्वयं सरस्वतीसँ प्रसन्न भऽ हुनका वरदान देवे छलाह जे वसंत पंचमीक दिन हिनकर जे आराधना करत ओ सुन्दर फल अर्थात् विद्याधनकेर अम्बार लगायत, ततहि लक्ष्मी आ पार्वती सेहो अपन आशीषकेर बरसात करती आ ताहि हेतु एहि शुभ दिन सरस्वतीक पूजा कैल जयबाक विशेष परंपराक शुरुआत भेल जे आइ धरि निरंतरतामे अछि। 

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