रविवार, 3 नवंबर 2013

महालक्ष्मी पूजाक संछिप्त विधि:

महालक्ष्मी पूजाक संछिप्त विधि: 




आइ कार्तिक कृष्ण अमावस्याक दिन - भगवती श्रीमहालक्ष्मी आ भगवान् गणेशक नवीन प्रतिमाक प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन कैल जाइछ। 

पूजा लेल कोनो चौकी अथवा कपडाक पवित्र आसनपर गणेशजीक दाहिनाभागमे माता महालक्ष्मीकेँ स्थापित कैल जेबाक चाही। पूजाक दिन घरकेँ स्वच्छ करैत पूजन-स्थलकेँ सेहो पवित्र करबाक चाही, स्वयं सेहो पवित्र होइत श्रद्धा-भक्तिपूर्वक संध्याकालमे हिनकर पूजा करबाक चाही। 

पूजाक सामग्री: यथाशक्ति फूल, अक्षत, नैवेद्य, आदि। विशेष: वस्त्र मे प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पियर रंगक रेशमी वस्त्र। पुष्पमे कमल व गुलाब प्रिय। फलमे श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़ प्रिय। सुगंधमे केवड़ा, गुलाब, चंदन केर इत्रक प्रयोग। अनाजमे चावल तथा मिठाईमे घरमे बनल शुद्धतापूर्ण केसरकेर मिठाई या हलवा, खीरक नैवेद्य उपयुक्त। प्रकाश लेल गायक घी, मूंगफली वा तिलक तेल। अन्य सामग्रीमे कुशियार, कमल गोटा, गोटा हरैद, बेलपात, पंचामृत, गंगाजल, ऊनक आसन, रत्न आभूषण, गायक गोबर, सिंदूर, भोजपत्र।

मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजीक नजिके कोनो पवित्र पात्रमे केसरयुक्त चन्दनसँ अष्टदल कमल बनबैत ओहिपर द्रव्य-लक्ष्मी (मुद्रा-रुपया)केँ सेहो स्थापित करैत एक संगे दुनूक पूजा करबाक चाही। 

सबसँ पहिने पूर्वाभिमुख वा उत्तराभिमुख भऽ आचमन, पवित्री-धारण, मार्जन-प्राणायाम कय अपना ऊपर आ पूजा सामग्रीपर निम्न मंत्र पढैत जल छिडकू:

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥

पुन: स्वस्तिपाठ करैत हाथमे जल-अक्षतादि लैत पूजनक संकल्प करी:

ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:। ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे ..... क्षेत्रे .... नगरे .... ग्रामे ...... नाम-संवत्सरे मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावस्यायां तिथौ ... (रवि) वासरे अमुक तोत्रोत्पन्न: अमुक नाम शर्मा (वर्मा, गुप्त:, दास:) अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिकपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

मन्त्र पढलाक बाद गणेशजीक सोझाँ हाथक अक्षतादिकेँ छोडी।

प्रतिमा-प्राण-प्रतिष्ठा:
बाम हाथमे अक्षत लैत दाहिना हाथसँ गणेशजीक प्रतिमापर निम्न मंत्र पढैत छोडैत चली:

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँ् (ग्वं) समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोऽम्प्रतिष्ठ।

ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥

तदोपरान्त भगवान् गणेशक षोडशोपचार पूजन: (१. दुग्धस्नान, २. दधिस्नान, ३. घृतस्नान, ४. मधुस्नान, ५. शर्करास्नान, ६. पञ्चामृतस्नान, ७. गन्धोदकस्नान, ८. शुद्धोदकस्नान, ९. वस्त्र, १०. उपवस्त्र, ११. यज्ञोपवीत, १२. चन्दन, १३. अक्षत, १४. पुष्पमाला, १५. दूर्वा, १६. सिन्दूर, १७. सुगन्धिद्रव्य, १८. धूप, १९. दीप, २०. नैवेद्य, २१. ऋतुफल, २२. करोद्वर्तन, २३. ताम्बूल, २४. दक्षिणा, २५. आरती, २६. पुष्पाञ्जलि, २७. प्रदक्षिणा, २८. विशेषार्घ्य, २९. प्रार्थना आ ३०. नमस्कार।)

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय सर्वेश्वराय शुबदाय सुरेश्वराय।
विद्याधराय विकटाय च वामनाय भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते॥
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:। नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नम:॥
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे। भक्तिप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक॥
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति। भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति॥
विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति। तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव॥
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया॥
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्। त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:॥

ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।

तदनन्तर नवग्रह

नवग्रह स्थापना ईशानकोणमे चाइर खडी पायासँ आ चाइर पडी पायासँ चौकोर मण्डलरूपमे, नौ कोष्ठक सहित बनाबी। बीच कोष्ठकमे सूर्य, अग्निकोणमे चन्द्र, दक्षिणमे मङ्गल, ईशानकोणमे बुध, उत्तरमे बृहस्पति, पूर्वमे शुक्र, पश्चिममे शनि, नैऋत्यकोणमे



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें