सोमवार, 7 जनवरी 2013

गजल- भास्करानन्द झा भास्कर


गाम- घरमें बड्ड कहबैका, सबके नीक लगैया
बाप हुनक छैथ ज्ञानी- दानी बेटा भीख मंगैया

लोकक लागल भीड़ घरमें निजस्व प्रयोजन संगे
सबहक घर निर्माणमें लागल हुनकर चार कनैया

सखा सहोदर नोरे डुबल, दहि गेल सगरो घरारी
शीत बसातमें कठुआयल, मन मोने मोन मरैया

भेल निठल्ला दलाने बैसल, पैसल बूढबा बीमारी
परिवारक झरि बहैत नोर पर सगरो गाम हसैया

खरहीक टूटल टाट कात बिना पगहा मरल बरद
नाइदक सान्ही खाली देखीकए बरदो आब लड़ैया 

-------------------------- भास्करानन्द झा भास्कर

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