शनिवार, 22 दिसंबर 2012

बुद्धि के मिथिला संपन्न आ मैथिल निर्धन

शुभ नारायण झा 
समस्त वसुधा मे सर्वविदित अछि जे मैथिल बुद्धि जिवि होइत अछि, विद्वताक भण्डार होइबाक प्रमाण हजारो लाखो साल पाहिले स लिखल शास्त्रादी मे खुबे एकर प्रमाणिकता भेटल। प्रत्येक युग मे मिथिलाक ज्ञान मीमांसा के चित्रण सदैब व्याप्त रहल अछि। याग्व्ल्लक, गौतम, जनक संग वाचस्पति, विद्यापति, अयाची, धरि मिथिलाक विद्वान्क परम्परा के निभावैत, हरिमोहन झा, नागार्जुन, रामवृक्ष बेनीपुरी, फनेश्वर नाथ रेनू, राजकमल चौधरी इत्यादि विद्वान् अधावधि अफरजात यशस्वी रहलाह अछि।


युग विज्ञानक अयाल तs कहू क्षेत्र मे अपार वैज्ञानिक सभ मिथिलाक बुद्धिजीवी होयबाक परंपरा के अप्पन उपलब्धि संग धोत्तक बनल छथि। हिनकर संख्या तs एतेक अछि जे उल्लेख करवा काल सबटा सीस आटिये बन्ह्बाक सदृश्य बुझने अति द्वन्द भए जाएत।
बुद्धिक खेल शतरंज मे तs श्री राम झा के कृति के के नै जनैत अछि? आईएएस, आईपीएस डा. इंजिनियर के तs गिनती पहाड़ ढहबाक सदृश्य होमत। अप्पन दुनिया के भाषा संग करब तs मैथिली विविध प्रकारेण अतुलनीय रहत। एक मात्र भाषा संस्कृतिये लsग नतमस्तक भs सकैछी, किएक नै हो। ओ देब भाषा समस्त देब भाषाक जननी जे छैथ। 

    हम कोनो बुद्धिजीवी रचना वा एकर कृति पर चर्चा नै करब किन्तु जाही क्षेत्र मे ऐना अनंत प्रतिभा भरल पुरल हो ओ क्षेत्र अपने किएक विभिन्न क्षेत्र मे पछुआयल अछि? हम बिना कोनो उदाहरणार्थ प्रमाण देने, अप्पन उम्रक पच्चास के नज़दीक अवैत जतबा प्रदेशक भ्रमण मे घाट घाट के पाइन पिवैत जे किछ अनुभव प्राप्त कएल। ताहि सs आर्यावर्त मे मैथिल स विशिस्ट होयबाक कोनो क्षेत्रक भूभाग नै भेटल। जतs भौगोलिक की बौद्धिक रूप सs ओ क्षेत्र विशेष प्रखर हो। वा कोनो स्वरूपे मैथिल सs बेसी प्रखर बुद्धि रखवा मे सामर्थ हो। ओ बात दोसर जे विभिन्न क्षेत्रक व्यक्ति विशेष क्षेत्र मे जरुर समस्त दुनिया मे एक सs एक नाम कs अपन क्षेत्रक प्रतिनिधित्व मैथिल के तुलना मे बहुत रास केने छैथ मुदा अग्रणी वर्गाक लोक, सार्वजानिक रुपे बुद्धिजीवी, विशेषतः मिथिला मे अछि ई बात मोने पडत। जे प्राकृतिक शारीरिक नकार शिकार सेहो एकर लोक कला आ संस्कृति तs दुनियाक कोनो सांस्कृतिक धरोहर के तुलना मे अधिकाधिक अछि, मिथिला धरे-धरे विविध कला मे माहिर कलाकार अछि जे बिना कोनो विशेष प्रशिक्षण के कलाक क्षेत्र मे अप्पन परम्परे सs पारंगत अछि। एतुक्का खान पानक शैली, पहिरवा-ओढ्बाक सोच, धर्म आ संस्कार परंपरा, इज्जत आ प्रतिष्ठा के मूल्य, सदैव सs उत्तोमतम मानल गेल अछि। अध्यात्म स जुडल ज्ञान एवं आचरण मे सद्गुण भरल पूडल छैक। पंचदेवो पाशक मैथिल सदगुण पर चलैत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे सुफल प्राप्त करैत रहल अछि तखन की कारन छै जे मैथिल के क्षेत्रीय सार्वजानिक विकास एखनहु साधारण छै? ई विषय प्रत्येक मैथिल के आत्मा मंथन योग्य अछि।

     जखन हम अपन भावना सs दोसर के भावनाक थाह लेवाक कोशिश करैत छी तs बहुत रास सर्वमान्य कारण नज़ैर अवैत अछि। पहिल तs ई जे नेनमैते सs हमरा सब के धुरक आइग तथैव अनकर खिदांस पर विशेष परिचर्चा करैत रहवाक पारंपरिक दुर्गुण अछि जे हमरा सबके अप्पन ज्ञानक विशेष हिस्सा के नकारात्मक कर्म मे व्यय भs जाइत अछि।अनकर खिदांस करवाक पीछा हमरा सबके एक दोसरक प्रति परस्पर ईष्याक धोत्तक अछिबद्धि के मिथिला संपन्न आ मैथिल निर्धनसमस्त वसुधा मे सर्वविदित अछि जे मैथिल बुद्धि जीवी होइत अछि, विद्वताक भण्डार होइबाक प्रमाण हजारो लाखो साल पाहिले स लिखल शास्त्रादी मे खुबे एकर प्रमाणिकता भेटल। प्रत्येक युग मे मिथिलाक ज्ञान मीमांसा के चित्रण सदैब व्यप्त रहल अछि। याग्व्ल्लक, गौतम, जनक संग वाचस्पति, विद्यापति, अयाची, धरि मिथिलाक विद्वान्क परम्परा के निभावैत, हरिमोहन झा, नागार्जुन, रामवृक्ष बेनीपुरी, फनेश्वर नाथ रेनू, राजकमल चौधरी इत्यादि विद्वान् अधावधि अफरजात यशस्वी रहलाह अछि।
युग विज्ञानक अयाल तs कहू क्षेत्र मे अपार वैज्ञानिक सभ मिथिलाक बुद्धिजीवी होयबाक परंपरा के अप्पन उपलब्धि संग धोत्तक बनल छथि। हिनकर संख्या तs एतेक अछि जे उल्लेख करवा काल सबटा सीस आंटिये बन्ह्बाक सदृश्य बुझने अति द्वन्द भए जाएत।


    बुद्धिक खेल शतरंज मे तs श्री राम झा के कृति के के नै जनैत अछि? आईएएस, आईपीएस डा. इंजिनियर के तs गिनती पहाड़ ढहबाक सदृश्य होमत। अप्पन दुनिया के भाषा संग करब तs मैथिली विविध प्रकारेण अतुलनीय रहत। एक मात्र भाषा संस्कृतिये लsग नतमस्तक भs सकैछी, किएक नै हो। ओ देब भाषा समस्त देब भाषाक जननी जे छैथ। 


      हम कोनो बुद्धिजीवी रचना वा एकर कृति पर चर्चा नै करब किंडू जाही क्षेत्र मे ऐना अनंत प्रतिभा भरल पुरल हो। ओ क्षेत्र अपने किएक विभिन्न क्षेत्र मे पछुआयल अछि? हम बिना कोनो उदाहरणार्थ प्रमाण देने, अप्पन उम्रक पच्चास के नज़दीक अवैत जतबा प्रदेशक भ्रमण मे घाट -घाट के पाइन पिवैत जे किछ अनुभव प्राप्त कएल। ताहि सs आर्यावर्त मे मैथिल स विशिस्ट होयबाक कोनो क्षेत्रक भूभाग नै भेटल जतs भौगोलिक की बौद्धिक रूप सs ओ क्षेत्र विशेष प्रखर हो। वा कोनो स्वरूपे मैथिल सs बेसी प्रखर बुद्धि रखवा मे सामर्थ हो। ओ बात दोसर जे विभिन्न क्षेत्रक व्यक्ति विशेष क्षेत्र मे जरुर समस्त दुनिया मे एक सs एक नाम कs अपन क्षेत्रक प्रतिनिधित्व मैथिल के तुलना मे बहुत रास केने छैथ मुदा अग्रणी वर्गाक लोक, सार्वजानिक रुपे बुद्धिजीवी, विशेषतः मिथिला मे अछि ई बात मोने पडत। जे पर्कृतिक शारीरिक नकार शिकार सेहो एकर लोक कला आ संस्कृति तs दुनियाक कोनो सांस्कृतिक धरोहर के तुलना मे अधिकाधिक अछि, मिथिला धरे-धरे विविध कला मे माहिर कलाकार अछि जे बिना कोनो विशेष पर्शिक्षण के कलाक क्षेत्र मे अप्पन परम्परे सs पारंगत अछि। एतुक्का खान पानक शैली, पहिरवा की ओढ्बाक सोच, धर्म आ संस्कार परंपरा, इज्जत आ प्रतिष्ठा के मूल्य, सदैव सs उत्तोमतम मानल गेल अछि। अध्यात्म स जुडल ज्ञान एवं आचरण मे सद्गुण भरल पूडल छैक। पंचदेवो पाशक मैथिल सदगुण पर चलैत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे सुफल प्राप्त करैत रहल अछि तखन की कारन छै जे मैथिल के क्षेत्रीय सार्वजानिक विकास एखनहु साधारणे छै? ई विषय प्रत्येक मैथिल के आत्मा मंथन योग्य अछि।

अनकर खिदांस करवाक पाँछा हमरा सबके एक दोसरक प्रति परस्पर इष्याक धोत्तक अछि। हम अप्पन प्रोन्नति सs ओते प्रशन्न नै भs पवैत छी। जतेक अनकर उन्नति हमरा दुखदायी लगैत अछि। दुखद स्थिति तs तेहेन भs जाएत अछि जे मानसिक अवसाद भ हमर व्यक्तित्व के हास कs दैत अछि, अवसादे मे रहवाक हिस्सा भs गेने, हम स्वयम अप्पन हीत सोचने छोइर आनक अहित सोचबाक विकत हिस्साक, अपने हित सोचव सs वंचित क दैत अछि आ हम आशातीत परिणाम सs स्वयं वंचित रहै जाइत छी। जs ई बात के  बुझि ली तs हम निश्चय सदैव उतरोत्तर विकास कs सकब। हमर सबहक मैथिल कालिदास सs पैघ आर कोन उदहारण भेटत? हुनक मुर्खतो सर्वविदित अछि आ य्त्नक बल पर पत्नीक फटकारक कारणे जे ओ ग्यानी आ सिद्ध भेला तs विश्व प्रसिद्द कवि भेल, बाजल जैत अछि जे कालिदासक एक मात्र रचना 'अभिज्ञान शाकुंतलम' पढने हमर जीवन सफल भए गेल। यौ जी एतव बुझवा के केकरो एते जे अनकर विषय मे जातवा गलत सोचब, ओते काल अपना लेल नीक किएक नै सोची। 

      किछु पारंपरिक भोजन शैली सेहो बुद्धिजीवी वर्ग के अप्पन बुद्धिक अनुपयोगिताक कारण छैक। भारतें के कतेक एहन प्रदेश अछि जतs भोजन लोक मात्र जीबाक लेल खाइत अछि। सदैव कुंड खाएत ओ भुसंद भेल रहैत छैथ आ हमरा सब के पूर्ण सचारक भोजन करवाक सौख सतत तरल खा गलल जेवा पर विवास केने अछि। खान पकवान अनंत परिकार हमर जीह के पूर्ण रुपें बहस देलक आ भोजन पर हमर सबटा ध्यान केन्द्रित भए जाइत अछि। भोरे आईंख खोइलते आजुक भोजन के विन्यास मे लागि जाइत छी। पत्नी उठिते पूछती यौ आय की खायब?, की बनाबू? पति उपलब्ध सामग्री पुइछ कs आजुक विन्याश फार्म देता तत्पश्चात ओ नित्य कर्म मे जेता। जाही भोजन हेतु भोर साँझ मिला कs दू घंटाक श्रम अधिकाधिक भs सकैछ ओही भोजन मे हमरा सव्हक नारी भरो दिन राईत लागल रहैत छथि। जेना हम भोजन हेतु जीवित होय। किएक तs चरुवाक्य मुनि हमरा सबके 'जावत जीवेत सुखं जीवेत, ऋण कृत्वा घृतं पिवेत' के जे मूल मंत्र देने छैथ। भोज भात मे रक्षक वा दरिद्र जेना भोजन करैत अपना के भोगिन्द्र बुझै छी। अक्सर लोकक मुखे सुनव जे हौ... जुरब, रुचब आ पचाब मे सबहक सत्ता चोरे होइत छै। जकरा लग भगवन माया देने छथिन्ह ओ ए स्वभावक स्वामी बनवा मे अपना के सौभाग्यशाली बुझित छैथ किन्तु जाकर घर भुजी भंग नै, तकरे बीबी के किडन चुड़ा, एहन प्रवृतिक मिथिला मे भंडार छै " जकरा खाय लेल लाय ने आ किदन पोछ्वा लेल मिठाई चाही। हमरा सब अपने आयाची जेंका जिह्वा पर नियुक्त राखे पडत ज भानुमती लिखी इतिहास पुरुष बनवाक ऐछ। हमरा सबहक प्रोन्नति मे हमर प्राकृतिक वातावरण सेहो कम जिम्मेवार नै अछि । छवो के छवो। 

 (बुद्धि के मिथिला संपन्न आ मैथिल निर्धन)
ई मिथिलांचल टुडे  मैथिलि  पत्रिका 
वर्ष 1 अंक  3  में  सामिल  अछि 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें