बुधवार, 12 दिसंबर 2012

मिथिला गीत- भास्करान्द झा भास्कर




मिथिला सत्य साहित्यक भूमि, छी गीत संगीतक उर्वर भूमि
हे विद्या-बुद्धि सपन्न मैथिल ! मिथिला-सांस्कृतिक श्रॄंगार करु।

मिथिला ज्ञान विज्ञानक भूमि, छी सिद्ध साधकक तपो भूमि
हे गौतम, वशिष्ठ, कणाद सपूत ! प्रगति-पथ आविष्कार करु।

मिथिला नीति राजनीतिक भूमि, छी स्वच्छ सुनेतृत्वक भूमि
हे सहॄदय स्वच्छ मानस मैथिल ! सतत सामाजिक सुधार करु।

मिथिला आत्म अध्यात्मिक भूमि, छी अनुपम, मनोहर भूमि
हे गहन अध्ययनरत जनकपुत्र ! निरन्तर आर्थिक सुधार करु।

मिथिला अमिट संस्कारक भूमि, छी चिन्तित चिता पर भूमि
हे चीर निन्द्रामें सूतल मैथिल ! जागृत मानसिक विचार करु।

मिथिला अन्न धन-धान्यक भूमि, छी महापुरुषक कर्म भूमि
हे मरुभूमिमें लोटल मैथिल ! महत मातॄभूमि पर उपकार करु ।

मिथिला मंडन अयाचीक भूमि, छी वाचस्पति विद्यापतिक भूमि
हे बिसरल अवचेतन मैथिल ! निज मैथिली चेतना संचार करु ।

------------------------------------- भास्कर झा, दिसंबर 2012

1 टिप्पणी: