मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मिथिलाक नोर- भास्करानन्द झा भास्कर

हहरि हहरि कए कानथि मिथिला
नुका नुका कए खसाबथि दुख नोर
राइतक अन्हरियामें छै भुतलायल
सम्मान-किरण युक्त सूरजक भोर।

मिथिला- सोईरीक जनमल बच्चा
ठमकि ठमकि भ गेलै वो सियान
नगर-नगरमें बनाबैथ महल अटारी
अप्पन धरतीक नहिं कोनो धियान।

मिथिला-मैथिलीके बिसरैत नवपीढी
सुन्न- सुबैक रहल छै गामक गाम
पोसनाहरक नोरक छै के पोछनाहर
कलपि रहल अछि विद्यापतिक धाम।

------ भास्कर झा 11 दिसंबर 2012

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें