शनिवार, 7 जुलाई 2012

मिथिलाक गुणगान



सुनु मिथिला केँ गुणगान अहाँ, हम की कहु अपन मोनें सँ
सभ  किछु तँ   अहाँ जैनते छी मुदा, हम कहैत छी ओरे सँ

उदितमान ई अछि अती  प्राचीन, ज्ञानक  भंडार अछि
ऋषि-मुनि केँ पावन धरती,  महिमा एकर अपार अछि

ड्यौढ़ी-ड्यौढ़ी फूलबारी, आँगन में तुलसी सोभति
कोसी-कमला मध्य वसल ई, भारतकेँ  सुंदर मोती

भक्ती-रस सँ कण-कण डुबल, अछि महिमा एकर अपार
शिव जतए एला चाकर बनि कए, सुनी भक्तकेँ  करुण पुकार

काली विष्णु पूजल जाई छथि, मिथिलाक एके आँगन में
छैक कतौ आन ई सामर्थ कहु, होई जे आँखिक देखने में

एहि धरती सँ जानकी जनमली, श्रीष्टिक करै लेल कल्याण
श्रीराम संग व्याहल गेलि, पतिवर्ताक देलैन उदाहरण महान

आजुक-कईल्हुक बात जुनि पुछू, भ्रस्त बनल अछि दुनियाँ
मुदा मिथिला में एखनो देखूँ, सुरक्षित घर में छथि कनियाँ

माय-बापकेँ  आदर दय छथि, एखनो तक मिथिले वासी
पूज्य मानी पूजा करैत छथि, घर आबए जे कियो सन्यासी

आजुक युग में धर्म बचल अछि, जे  किछु एखनों मिथिले में
आँखिक पैन बचल अछि देखू, जे किछु एखनों मिथिले में

कि कहु आब मिथिलाक महिमा,समावल जाएत नै लेखनी में
हमरा में ओ सामर्थ नहि अछि, बांध सकी जे पाँति में

जगदानन्द झा 'मनु'

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