गुरुवार, 21 जून 2012

प्राथमिक अस्थिसौषिर्य : जानकारी आ बचाव परिचय



प्राथमिक अस्थिसौषिर्य : जानकारी आ बचाव परिचय 
“अस्थिसौषिर्य” । सुनबा मे बहुतहु लोक केँ ई कोनहु नऽव बेमारीक नाँव बूझि पड़तन्हि पर ई नऽव नञि । मैथिली साहित्य मे ई नाँव भलहि नऽव हो पर एकर संग जुड़ल स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या नऽव नञि । अंग्रेजी मे एकरा ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) कहल जाइत अछि । शहर मे रहए बला किछु लोक जरूर आब एकरा चीन्हि गेल होयताह । ई मुख्यतः हाड़ या हड्डीक बेमारी थिक । भारत मे एहि बेमारीक व्यापकता नीचा देल गेल किछु तथ्य सभ सँ लगाओल जा सकैत अछि -
Ø  विश्व स्वास्थ्य संगठनक (WHO) अनुसार हृद्-धमनी विकार (Cardio – Vascular Diseases) केर बाद विश्व मे दोसर स्थान “अस्थिसौषिर्य” (Osteoporosis) केर अछि ।
Ø  एक सर्वेक्षणक अनुसार 2003 ई॰ मे भारत मे अस्थिसौषिर्यक रोगीक संख्या 26 करोड़ छल जे कि 2013 ई॰ धरि 36 करोड़ भऽ जयबाक अनुमान अछि ।
Ø  भारत मे 50 – 60 वर्षक वयसक हर 8 मे सँ ‍1 पुरुष आ हर 3 मे सँ ‍1 स्त्री एहि बेमारीक चपेट मे छथि ।
Ø  पश्चिमी देश सभक अपेक्षा भारत मे अस्थिसौषिर्यक पुरुष रोगीक अनुपात बेशी अछि ।
Ø  पश्चिमी देश सभक तुलना मे भारत मे अस्थिसौषिर्य शुराआत अपेक्षाकृत कम वयस मे होइत अछि । पच्छिमी देश सभ मे अस्थिसौषिर्यक कोनहु लक्षण प्रायः 60 – 70 वर्षक आयु मे देखबा मे अबैछ जखन कि भारत मे ई आयु सीमा घटि कऽ 40 – 60 वर्ष धरि आबि गेल अछि ।
              सामान्य भाषा मे, जँ हड्डीक खनिज तत्त्वक घनत्व (Bone Mineral density / BMD)  मे एतबा कमी भऽ जाएब कि ओहि कारण हड्डीक सुक्ष्म उत्तकीय संरचना (Tissue level structure) प्रभावित होयब शुरू भऽ जाए तऽ ओहि प्रकारक विकृति केँ “अस्थिसौषिर्य” या “ऑस्टियोपोरोसिस” (Osteoporosis)  कहल जाइछ - कारण चाहे किछु हो । अस्थिसौषिर्यक कारण हड्डी भंगूर / कमजोर (brittle / fragile / weak) भऽ जाइत अछि आ साधारणहु आघात (trivial trauma) वा कखनहु – कखनहु बिना आघातहि केँ (अपन शरीरक भार सँ) हड्डी टूटि सकैछ ।
                  अस्थिसौषिर्य केर प्रारम्भिक अवस्था केँ “अस्थिन्यूनता” या “ऑस्टियोपीनिया” (Osteopenia)  कहल जाइत अछि । अस्थिन्यूनताक स्थिति मे हड्डी केर खनिज तत्त्वक घनत्व सामान्य वा औसत (average) सँ कम रहैछ, परञ्च एतेक कम नहि कि कोनो उत्तकीय संरचनात्मक विकृति उत्पन्न कऽ सकए । तथापि जँ समय पर उचित परहेज वा ईलाज नञि कएल गेल तऽ ओ आगाँ समय मे बढ़ि कऽ अस्थिसौषिर्य आ ओहू सँ आगाँ “अस्थिसौषिर्य जनित अस्थिविकृति वा अस्थिभग्न” (Osteoporotic bone deformity or fracture) केर रूप लऽ सकैछ ।
कैल्सियम चयापचय / उपापचय (Calcium Metabolism)
                  अहाँ सभ केँ एतबा तऽ अवश्ये बूझल होयत कि हाड़ / हड्डी केर मजबूती ओहि मे पाओल जाय बला खनिज तत्त्व सभ (Minerals)  पर निर्भर करैछ, जाहि मे कैल्सियम (Calcium), फास्फोरस (Phosphorus)मैग्नेशियम (Magnesium) प्रमुख थिक । ई खनिज तत्व हड्डी मे विभिन्न तरहक यौगिक (Compounds)  केर रूप मे पाओल जाइछ, जकरा नोण /लवण * (Salt) कहल जाइछ, जाहि मे कैल्सियम फॉस्फेट (Calcium phosphate) प्रमुख थिक । ई नोण खाएबला नोण सँ अलग थिक ।  खाएबला नोण केर रासायनिक नाँव सोडियम क्लोराइड (Sodium chloride) थिक ।
     जे किछु मनुक्ख खाइत – पिबैत अछि ओकर यथोचित पचन (digestion) भेलाक बाद ओहि मे उपस्थित विभिन्न घटक द्रव्य सभक अवशोषन (absorption) आँत मे होइत अछि । आँत सँ कैल्सियम केर अवशोषन करबा मे विटामिन – डी  (Vitamin – D)मैग्नेशियम (Magnesium)  नामक तत्त्वक सहयोग महत्त्वपुर्ण अछि आ तेँ एहि मे सँ ककरहु कमी भेने कैल्सियम केर अवशोषन केँ प्रभावित होइछ आ भोजन मे कैल्सियम रहितहु शरीर केँ प्राप्त नञि होइछ । तकरा बाद अवशोषित कैल्सियम केर स्वांगीकरन (assimilation) होइत अछि जकरा सामान्य भाषा मे “देह मे लागब” कहल जाइत अछि ।
                 कोनहु प्रकारक स्वांगीकरनक प्रक्रिया वास्तव मे शरीर केर अवयव - निर्माण केर प्रक्रिया थिक तेँ ओकरा चय / उपचय (anabolism) सेहो कहल जाइछ । एहिना हड्डी मे सँ कैल्सियम केर कम होयब अवयव – क्षय अथवा विघटनक प्रक्रिया थिक जकरा अपचय (catabolism) कहल जाइछ । आ शरीर मे ई निर्माण आ क्षय केर प्रक्रिया निरन्तर चलैत रहैत अछि जकरा सामुहिक रूप सँ चयापचय / उपापचय (metabolism) कहल जाइछ । जा धरि एहि दुहु तरहक प्रक्रियाक बीच सामनञ्जस्य आ सन्तुलन रहैछ ता धरि शरीर वा शरीरक अवयव विशेष (यथा – हड्डी) स्वस्थ रहैछ । पर उचयात्मक प्रक्रिया केँ कम भेने वा / आ अपचयात्मक प्रक्रिया केँ बेशी भेने हड्डी सँ कैल्सियम केर क्षय होइछ आ तेँ हड्डीक घनत्व सेहो कमि जाइत अछि । जे किछु पदार्थ वा घटक द्रव्य हड्डी मे कैल्सियम केर मात्रा केँ बढ़बैत अछि,  अर्थात् हड्डीक घनत्व केँ बढ़बैत अछि तकरा उपचयात्मक पदार्थ / घटक द्रव्य आ तहिना जे किछु पदार्थ वा घटक द्रव्य हड्डी मे कैल्सियम केर मात्रा केँ घटबैत अछि,  अर्थात् हड्डीक घनत्व केँ कम करैत अछि तकरा अपचयात्मक पदार्थ / घटक द्रव्य कहल जाइत अछि । किछु उदाहरण निम्न प्रकारेँ अछि -
(क) .   उपचयात्मक (हड्डीक खनिज घनत्व बढ़एनिहार) पदार्थ / घटक द्रव्य
१.       खान – पिउन मे कैल्सियम केर प्रचूरता,
२.     विटामिन – डी केर उचित मात्रा मे उपलब्धि,
३.     खान – पान मे मैग्नेशियम केर उचित मात्रा मे उपलब्धि,
४.     शरीर मे पाओल जाय बला किछु हार्मोन (Hormones) जेना कि एस्ट्रोजेन (Estrogens), एण्ड्रोजेन (Androgens), कैल्सिटोनिन (Calcitonin) आदि केर उचित मात्रा मे स्रवण (Secretion),
५.     शारीरीक श्रम आ व्यायाम,
६.      बाल व युवावस्था आदि ।
(ख) .  अपचयात्मक (हड्डीक खनिज घनत्व घटओनिहार) पदार्थ / घटक द्रव्य
१.       खान – पिउन मे कैल्सियम केर कमी,
२.     खान – पिउन मे विटामिन – डी वा कहुखन मैग्नेशियम केर कमी,
३.     शरीर मे पाओल जाय बला किछु हार्मोन जेना कि थाइरॉक्सिन (Thyroxin), पैराथॉर्मोन (Parathormone) आदि केर बेशी मात्रा मे स्राव,
४.     वृद्धावस्था,
५.     शारीरीक श्रम आ व्यायाम केर अभाव,
६.      तमाखू, बीड़ी, सिगरेट आदिक सेवन,
७.     दारू / मद्य केर बेशी सेवन (Alcohol consumption in excess)
८.     स्टेरॉइड समूहक दवाई (जेना कि – हाइड्रोकॉर्टीसोन, प्रेडनिसोलोन, बीटा – मीथाजोन आदि)  केर बेशी काल धरि प्रयोग (प्रायः दम्मा आदिक रोगी मे)  आदि ।
 
अस्थिसौषिर्य केर प्रकार
१.       प्राथमिक (Primary osteoporosis)  जे अस्थिसौषिर्य हरेक व्यक्ति मे कहियो ने कहियो स्वयम् अबैछ – ककरहु मे थोड़ेक पहिने आ ककरहु मे थोड़ेक बाद, ककरहु मे थोड़ेक बेशी आ ककरहु मे थोड़ेक कम । जकर जड़ि मे  कोनो आन बेमारी कारण बनि कऽ नञि रहैछ । एकर दू उपप्रकार थिक
(क) .   टाइप ‍१ – बार्धक्यजन्य (senile) प्राथमिक अस्थिसौषिर्य (स्त्री आ पुरुष दुहु मे प्रभावी)
(ख) .  टाइप ‍२ – रजोनिवृत्तिजन्य (post menopausal) प्राथमिक अस्थिसौषिर्य (मात्र स्त्रीगण -टा मे प्रभावी)
२.      द्वितियक (Secondary osteoporosis) जे अस्थिसौषिर्य कोनो आन बेमारी केर कारण उत्पन्न होइछ; जेना कि –
(क) .   थाइरॉयड ग्रण्थि केर काज बढ़ला सँ यथा हाइपरथाइरॉइडिज्म आ थाइरोटॉक्सिकोसिस मे  
(Hyperthyroidism & Thyrotoxicosis),
(ख) .  पैराथाइरॉयड ग्रण्थि केर काज बढ़ला सँ (Hyperparathyroidism),
(ग) .    किछु कैन्सर मे, विशेषतः मल्टिपल मायलोमा मे (Multiple myeloma),
(घ) .    बृक्क आ यकृत विकार सभ (Kidney & Liver diseases) मे,
(ङ) .    अनियण्त्रित मधुमेह (Uncontrolled Diabetes Mellitus) आदि मे ।

          जँ उचित जानकारी हो तऽ प्राथमिक अस्थिसौषिर्य केँ बहुत हद तक रोकल जा सकैत अछि आ एहि कारण जे क्षति होइत अछि तकरा कम कएल जा सकैछ । ई लेख मुख्यतः एकरहि लक्ष्य कऽ कऽ लिखल गेल अछि कारण कि एहि प्रकारक रोगीक संख्या अपेक्षाकृत बहुत – बहुत बेशी अछि आ बचाव अपेक्षाकृत बहुत आसान ।  द्वितियक अस्थिसौषिर्य केँ रोकबाक हेतु ओकर मूलभूत कारणक उचित ईलाज अपेक्षित अछि, जे कि हर कारण लेल अलग अलग अछि आ तेँ अतिविस्तृत ओ जटिल होयबाक कारणेँ एहि लेख केर विषय नञि थिक ।
लक्षण
                    दुर्भाग्यवश एहि बेमारीक अपन कोनहु लक्षण नञि होइत अछि । ई बिना कोनो लक्षण देखएनहि चुपचाप बढ़ैत रहैत अछि । जखन ई बहुत अधिक बढ़ि जाइत अछि आ हड्डी बहुत कमजोर भऽ जाइत अछि तखन एकर कोनहु लक्षण निम्न रूप मे देखबा मे अबैछ –
·         माटि खएबाक आदति लागब ( विशेष रूपेण रजोनिवृत्त / महीना आएब बन्न भेल या बन्न होअए सँ पहिने अनियमित भेल स्त्रीगण लोकनि मे) । ई आदति बेशीतर गाम – घऽर मे देखबा मे अबैछ, जे कि शरीर मे लोहा आ कैल्सियम केर कमी केँ सुचित करैछ । ई सभसँ पहिल सूचक थिक, जखन कि प्रायः कोनहु आन प्रकारक विकृति नञि उत्पन्न भेल रहैछ । ओना ई लक्षण नेनपन वा गर्भावस्थाक समय किछु स्त्रीगण मे सेहो देखल जाइछ आ ओहू ठाम ओ शरीर मे लोहाक आ कैल्शियम केर कमी केँ बोध करबैछ ।
·         बिना कोनहु आन कारण (यथा – आघातादि) केँ रहैत गर्दनि केर झुकि जायब,
·         बिना कोनहु कारणहि रीढ़क हड्डी केर झुकि जायब (प्रायः आगाँ दिशि) – पहिने ई झुकाव कम रहैछ बाद मे धीरे – धीरे एतेक बढ़ि जाइत अछि कि प्रभावित ब्यक्ति 90 डिग्री तक झुकि कऽ चलैछ ।
·         प्रायः 40 - 50 वर्ष वा ओकर बादक वयस मे गर्दनि, पीठ, डाँढ़ या रीढ़क हड्डी मे अचानक तेज दर्द (Sudden acute pain) होयब या फेर बहुत नाम समय तक अपेक्षाकृत कम दर्द होयब (Gradual chronic pain) । एहि प्रकारक अवस्था प्रायः रीढ़क हड्डी मे कतहु भग्न (Compression fracture of vertebral body) होयबाक सम्भावना केँ सुचित करैछ ।
·         रीढ़क हड्डीक झुकावक संग – संग हाथ वा पएर केर लकवाग्रस्त होयब । ओना तऽ एहि मे आनहु कारण सम्भव थिक लेकिन रीढ़क हड्डी मे कतहु भग्न (Compression fracture of vertebral body)  होयबाक सम्भावना सेहो भऽ सकैछ ।
·         बृद्धावस्था मे साधारण सन कोनहु आघात या ममूली सन पएर पिछड़बाक बाद उठबा या चलबा मे असमर्थता । ई फीमर (Femur)  नामक जाँघक हड्डी केर नितम्ब प्रदेश (Hip region) मे टुटि जयबा केँ सुचित करैछ ।
    तऽ एहि प्रकारेँ, प्रायः कोनहु हड्डी टूटलाक (बिना कोनो उपयुक्त आघात केर) बादहि अस्थिसौषिर्यक पहिचान होइत अछि वा कहुखन – कहुखन कोनहु आन बेमारीक ईलाज केर लेल कराओल गेल एक्स – रे रिपोर्ट मे एहि बेमारीक बारे मे पता चलैछ । ई बेमारी बृद्धावस्था मे जिनगी केँ कतेक प्रभावित करैछ तकर अनुमान नीचा देल गेल बात सभ सँ सहजहि लगाओल जा सकैत अछि -
Ø  विश्व मे अस्थिसौषिर्यक कारण नितम्ब भग्न (Hip fracture) केर संख्या प्रतिवर्ष करीब ‍1 करोड़ 60 लाख अछि, जे कि 2050 ई॰ धरि प्रतिवर्ष 6 करोड़ 30 लाख तक पहुँचि जयबाक अनुमान अछि ।
Ø  भारत मे अस्थिसौषिर्य केर कारण नितम्ब भग्न (Hip fracture) केर अनुपात स्त्री आ पुरुष मे बराबरहि अछि जखन कि पच्छिमी देश सभ मे पुरुषक अपेक्षा स्त्रीगण सभ मे ई बेशी भेटैछ ।


नितम्ब भग्न (Hip fracture) केर संख्या
(प्रति वर्ष, प्रति 1000 रोगी)


WHO  श्रेणी
वयस
50-64 वर्ष
> 64 वर्ष
औसत (Overall)
सामान्य मनुक्ख
5.3
9.4
6.6
अस्थिन्यूनता
11.4
19.6
15.7
अस्थिसौषिर्य
22.4
46.6
40.6


कारण
प्राथमिक टाइप ‍- ‍१ अस्थिसौषिर्य स्त्री आ पुरुष दुहु मे देखल जाइत अछि । वयस बढ़ला पर पुरुष मे एण्ड्रोजेन (Androgen) नामक हार्मोन आ स्त्री मे एस्ट्रोजेन (Oestrogen / Estrogen) नामक हार्मोन केर प्राकृतिक रूप सँ कमी होयब एकर कारण थिक । यद्यपि ई स्त्री आ पुरुष दुहु मे देखल जाइत अछि तथापि पुरुष मे एकर दुष्प्रभाव बहुत कम देखल जाइत अछि ।
प्राथमिक टाइप ‍- २ अस्थिसौषिर्य स्त्रीगण मे रजोनिवृत्ति (महीना बन्न होयब) केर कारण एस्ट्रोजेन (Oestrogen / Estrogen)  नामक हार्मोन केर कमी सँ उत्पन्न होइछ । एहि प्राकारेँ सत्रीगण लोकनि मे कम सँ कम दू – टा कारण एक संग प्रभावी होइछ – बृद्धावस्था आ रजोनिवृत्ति – आ तेँ ओ लोकनि एहि बेमारी सँ बेशी ग्रसित छथि । संगहि हुनिका लोकनि मे खान – पिउनक हीन स्तर सेहो योगदानकारक होइछ ।
द्वितियक अस्थिसौषिर्य केर बहुत रास कारण थिक जाहि मे सँ किछु ऊपर पहिनहि देल जा चुकल अछि । बहुत रास कारण होयबाक उपरान्तहु द्वितियक अस्थिसौषिर्यक रोगीक संख्या प्राथमिक अस्थिसौषिर्यक रोगीक संख्या सँ बहुतहि कम अछि ।

बचाव आ ईलाज
कोनहु बेमारीक बारे मे जानकारी होयब ता धरि कोनहु उपयोगक नञि जा धरि ओहि सँ बचाव आ ओकर ईलाजक जानकारी नञि हो । रजोनिवृत्तिक केँ आ बढ़ैत वयस केँ रोकल नञि जा सकैत अछि पर योगदानकारी आन चीज सभ केँ जरूर रोकल जा सकैत अछि आ एहि बेमारी केर दुष्परिणाम सँ बहुत दूर धरि बचल जा सकैत अछि । बचाव आ ईलाज सम्बन्धी किछु धेआन देबा योग्य बाद निम्न प्रकारेँ अछि -
Ø  कैल्सियमयुक्त आहार लेबाक चाही । मोटा – मोटी 45 वर्षक आयुक बाद सामान्य रूप सँ करीब डेढ़ गुणा केल्सियम केर आवश्यकता पड़ैछ । कैल्सियम केर अधिक मात्रा बला किछु भोज्य पदार्थ सभ अछि – अण्डा, दूध, दऽही, सभ प्रकारक दालि, सोयाबीन, सोरिसो, पातकोबी, शलगम, सजमनि, मुनिगा (सहजनि) आदि ।
Ø  विटामिन – डी केर उपयुक्त मात्रा मे सेवन करबाक चाही । ओना तऽ भारत सन देश जतए नीक रौद उगैछ ओहि ठाम ई बात लिखब अनर्गल सन लगैछ, पर अनर्गल नञि थिक । एकटा सर्वेक्षणक अनुसार भारत मे आशाक विपरीत कतेको गुणा लोक मे विटामिन – डी केर कमी पाओल गेल अछि; खास कऽ स्त्रीगण वर्ग मे आ बन्न ऑफिस मे काज कएनिहार स्त्री आ पुरुष दुहु वर्ग मे ।
Ø  जँ खएबा मे नोनक मात्रा (खाए बला नोन = सोडियम क्लोराइड) सामान्य सँ बेशी अछि तऽ ओकरा थोड़ेकम रखबाक चाही । अस्थिसौषिर्यक अतिरिक्त ब्लड – प्रेशर कम करबा मे सेहो लाभदायक अछि ।
Ø  चाह आ कॉफी केर सेवन कम सँ कम वा भऽ सकए तऽ नहिञे करबाक चाही । कारण एहि  मे पाओल जाए बला “थिईन” वा “कैफीन” नामक तत्त्व आँत सँ कैल्सियम केर अवशोषण मे व्यवधान उत्पन्न करैछ ।
Ø  तमाखू, बीड़ी, सिगरेट केर उपयोग बन्न राखी तऽ अत्युत्तम । कारण एकर किछु घटक द्रव्य आँत सँ कैल्सियम केर अवशोषण मे व्यवधान उत्पन्न करैछ आ संगहि अवशोषित कैल्सियम केर शरीर द्वारा उपयोग करबा मे सेहो बाधा उत्पन्न करैछ । अस्थिसौषिर्यक संग – संग मूँहक वा फेफड़ाक कैन्सर सँ सेहो बचाव ।
Ø  जँ उपरोक्त लक्षण सभ मे सँ कोनहु लक्षण प्रकट होअए तऽ तुरन्त उपयुक्त चिकित्सक सँ सम्पर्क करी ।
Ø  दारू या मद्य सेहो आँत सँ कैल्सियम केर अवशोषण मे व्यवधान उत्पन्न करैछ आ संगहि हड्डी मे पहिने सँ योजित कैल्सियम केँ निकालि मुत्र मार्ग सँ शरीर सँ बाहर निकालि दैछ । एहि प्रकारेँ दारू शरीरक कैल्सियम केँ दूतरफा नोकशान पहुँचबैछ । तेँ दारू वा मद्य केर सेवन कम सँ कम वा एकदम नञि करी से नीक । एहि सँ यकृत (Liver) केर होमए बला नोकशान सेहो रोकल जा सकैछ ।
Ø  35 -40 वर्षक आयुक स्त्रीगण लोकनि (वा पुरुष मे सेहो) मे जँ माटि / चॉक / सिलेटिया पेनसिल खएबाक जानकारी होअए तऽ हुनिका डँटबाक अपेक्षा उचित चिकित्सकीय परामर्श लेबा पर ध्यान दी । जँ उपलब्ध हो तऽ अस्थि – खनिज घनत्त्व वा बोन – मिनेरल – डेन्सिटी (Bone Mineral Density, BMD) नामक जाँच करबाओल जा सकैत अछि अन्यथा हाथ, पएर वा आन हड्डी केर एक्स – रे देखि कऽ चिकित्सक अस्थिसौषिर्यक अनुमान लगा सकैत अछि आ तदनुसार चिकित्सा प्रारम्भ कऽ सकैत अछि ।
Ø  जँ उपरोक्त वर्णित दुखएबाक प्रकार मे सँ कोनहु प्रकारक दर्द होअए तऽ मात्र दर्द मारबाक गोली या इन्जेक्शन लऽ कऽ काज चलएबाक प्रयास नञि करी अपितु उचित चिकित्सकीय परामर्श ली । आवश्यकता बुझएला कर चिकित्सक सम्बन्धित स्थानक एक्स – रे करबा कऽ देखि सकैत अछि ।
Ø  जँ कोनहु प्रकारक अस्थि – भग्न (Fracture)  वा कोनो आन मूलभूत कारण (जेना कि – डाइबीटीज, हाइपरथाइरॉइडिज्म आदि) हो तऽ ओकर समुचित ईलाजक संग - संग अस्थिसौषिर्यक उचित चिकित्सा सेहो करएबाक चाही । एहि सँ आगा फेर एहि प्रकारक घटना होयबा केँ रोकल जा सकैत अछि ।
Ø  अस्थिसौषिर्यक तत्काल चिकित्सा केर लेल चिकित्सक द्वारा किछु महीना केर लेल कैल्सियम, फॉस्फोरस आ आन सहयोगी वा उपयोगी खनिज तत्वक गोली वा सूई उचित मात्रा मे देल जाइत अछि । एहि प्रकारक गोली कतेको महीना धरि लेबए पड़ि सकैत अछि, तेँ अपना मोन सँ दवाई केँ कम करबाक प्रयास वा बन्न करबाक प्रयास नञि करबाक चाही।
Ø  शुरुआत मे किनकहु – किनकहु कैल्सियम गोली सँ थोड़ेक अपच होयबाक कारण थोड़े गर्मी सन बुझि पड़ैत छन्हि पर से नगण्य आ ताहि द्वारे अपने आप दवाई बन्न नञि करबाक चाही । कोनहु समस्या जँ बेशी बुझि पड़ए तऽ उचित चिकित्सक सँ सलाह ली , नञि कि स्वयम् वा कोनहु अल्प जाननिहारक सलाह पर चिकित्सा करी ।
Ø  बहुतहि बेर चिकित्सक मात्र एक्स – रे देखि कऽ वा BMD जाँचक आधार पर दवाई दैत अछि जखन कि उपर सँ देखला पर मनुक्ख स्वस्थ लगैछ । एहिना स्थिति मे भ्रमवश (कि हम तऽ ठीकहि छी फेर दवाई कऽथी लेल) रोगी दवाई लेनाइ छोड़ि दैत अछि । से नञि करबाक चाही ।
Ø  सभसँ अन्तिम पर सभसँ महत्त्वपुर्ण चीज कि 40 वर्षक अवस्था केर बाद कोनहु प्रकारक पिछड़बाक सम्भावना बला स्थान पर नञि जाइ, युवावस्था जेकाँ गम्भीर शारीरिक श्रम सँ परहेज राखी । पर एकर मतलब ई नञि कि कोनहु प्रकारक शारीरिक श्रम नञि करी ।
लवण = लोण = नोण = नोन = नून
 
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर
निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४,
मोबा॰ ०९७६२१२६७५९

मिथिलाञ्चल  मैथिली पत्रिका,  
मार्च २०१२ अंक मे प्रकाशनार्थ  प्रेषित।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें