बुधवार, 23 मई 2012
रूबाई
कखनो तँ हम अहाँ केँ मोन पडिते हैब
यादिक दीप बनि करेज मे जरिते हैब
बनि सकलहुँ नै हम फूल अहाँक कहियो यै
मुदा काँट बनि नस नस मे तँ गडिते हैब
1 टिप्पणी:
प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'
26 मई 2012 को 9:25 pm बजे
सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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