रविवार, 8 अप्रैल 2012

नाटक:"जागु"
दृश्य:पाँचम
समय:दुपहरिया
(लाल काकी आँगन में धान फटकैत )

(विष्णुदेवक प्रवेश )

विष्णुदेव: गोड़ लागे छी  लाल काकी !

लाल काकी: के..? विष्णुदेव ! आऊ, खूब निकें रहू ।

विष्णुदेव: लाल काकी ! बुझि परैया--एहि बेर धान खूब उपजलाए ?

लाल काकी : हाँ , सब भगवतिक कृपा ! जँ एहि तरहे अन्न-पानि उपजाए , त' मिथिलावाशी कें अपन गाम-घर छोइड़ भदेस नै जाए पड़तैं ।

(प्लेट में एक गिलास आ एक कप चाय  ल' गीताक प्रवेश , गीता दुनु गोटे के चाय द' दुनु गोटे के पाएर छू प्रणाम करैत )

विष्णुदेव: खूब निकें रहू ! पढू-लिखू  यसस्वी बनूँ ! अपन गीता नाम के चरितार्थ करू ।

गीता: से कोना होएत कका ?

विष्णुदेव:...किएक ? अहाँ  स्कूल नै जाइत छी की ?

गीता:...नै !
 लाल काकी: (बीचे में )...आब स्कूल जा' क' की करतै ! बेटी के बेसी पढ़ेनाहि ठीक नै , चिट्ठी-पुर्जी लिखनाई-पढ़नाई आबि गेलहि , बड्ड भेलहि ..

विष्णुदेव:...काकी !! पढाई त' सब लेल अनिवार्य थिक, चाहे ओ बेटी होइथ वा बेटा । आओर , खास क' बेटी कें त' बेसी  पढबाक चाही , कारण, बेटीए त' माए बनैया । माए परिवारक ध्रुव केंद्र होइत छथि । हुनक संस्कार आ शिक्षाक प्रभाव सीधा -सीधा धिया-पुता आ समाज पर परैत अछि ।

लाल काकी:..सें त' बुझलौं ! मुदा, बेसी पढि-लिख लेला सँ विआहक समस्या उत्पन्न भ' जाइत  अछि ! बेसी पढ़त त' बेसी पढ़ल जमाए चाही । बेसी पढ़ल जमाए ताकू त' बेसी दहेज़ --कहाँ  सँ पा'र लागत ?...एक त' पढ़ाइक खर्च , ऊपर सँ दहेजक बोझ , बेटी वाला त' धइस जाइत अछि ।

गीता :....कका ! की बेटी एतेक अभागिन होइत अछि ? ... जकर जन्म लइते माए- बाप दिन-राइत चिंतित रहे लगैत छथि ! बेटीक जन्मइते माए-बाप  "वर" ताकअ लगैत छथि ! आओर ओकर हिस्साक कॉपी-किताबक टका विआह हेतु जमा होबअ लगैत अछि !....कका ! की मात्र दहेजक डर सँ बेटी कें अपन अधिकार सँ वंचित काएल जाइत अछि वा पुरुष प्रधान समाज कें ई डर होइत छन्हि ----जँ नारी बेसी ज्ञानी भ' जेती त' हुनका सँ आगू नै भ' जाए ......???

विष्णुदेव:..नै बेटी , नै ! बेटी अभागिन नै सौभागिन होइत छथि ! बेटी त' दुर्गा , सरस्वती आ लक्ष्मी रूप छथि ! नारी त' पत्नी रूप में दुर्गा अर्थात "शक्तिदात्री ", माए रूप में सरस्वती  अर्थात "ज्ञानदात्री" आ बेटी रूप में लक्ष्मी अर्थात सुखदात्री छथि । हमर शास्त्र में त' नारी कें उच्च स्थान देल गेल अछि , जेना ----
     "यत्र नारी पूज्यन्ते , तत्र लक्ष्मी रमन्ते "
    " या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण सवंस्थिता ।
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै  नमो: नम: ।।"---आदि -आदि ...
 ई जें समाज में उहा-पोह आ दहेजक प्रकोप देख रहल छी , एकर एकटा मात्र कारण  थिक --'मिथ्या प्रदर्शन ' ! एक-दोसर कें नीच देखेबाक होड़ आओर बेसी-स-बेसी दोसरक सम्पति हड़पबाक लोभ ।

गीता: कका ! त' की हम पढि-लिख नै सकैत छी ? की डॉक्टर बनि समाजक सेवा करबाक हमर सपना पूर्ण नै भ' सकैत अछि ? की हमर आकांक्षा के दहेजक बलि चढअ परतै ?

विष्णुदेव: (गीता सँ )...बेटी , अहाँ जुनि निराश हौ ! अहाँ पढ़ब आ जरुर पढ़ब ! हम सब मिल अहाँ कें जरुर डॉक्टर बनाएब । होनहार पूत केकरो एक कें नै बल्कि समाजक पूत होइत अछि । (लाल काकी सँ )... लाल काकी , ई त' कोनो जरुरी नै जे जँ बेटी डॉक्टर छथि त' "वर" डॉक्टर आ इंजिनियर हौक ! जँ बेटी स्वंम  आत्मनिर्भर छथि त' कोनो नीक संस्कारी आ पढ़ल-लिखल लड़का सँ विआह करबा सकैत छी । अपन सबहक नजरिया के बदले परत, तहने ई समाज आगू बढ़ी सकैत अछि । ... काहिल सँ गीता कें स्कूल जाए दिऔ । पढि-लिख क' अहाँक संग सम्पूर्ण समाज कें नाम रौशन करत । अच्छा आब हम चलैत छी ।(प्रस्थान)
   दृश्य:तेसरक समाप्ति              


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें