शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

पद-चिन्ह

 
" पद-चिन्ह "
नै कान तूँ! नै कान तूँ !
एक दिन करबाए नाम तूँ
आई कष्ट काटि रहल छें तूँ
एक दिन करबाए नाम तूँ
नै कान तूँ ! नै कान तूँ !
शिव धनुष तोड़बा लेल
बनि जो आई राम तूँ
परुशरामक क्रोध खाइयो कें
मुदा नै हार मान तूँ
नै कान तूँ ! नै कान तूँ !
सूरज डूबि फेर उगई छै
नदी सूइख फेर भड़ई छै
गाछो मे पतझड़ होइत छै
फेर किएक छें उदास तूँ
नै कान तूँ !नै कान तूँ !
की केयो मनुष कह्तौ तोड़ा
जँ मात्र खा-पी मईर जेबें तूँ ?
जँ जन्म लेलें एहि धरती पर
त किछु नव- पथ करै निर्माण तूँ
नै कान तूँ ! नै कान तूँ !
कह! तोरा-ओकरा मे कुन अन्तर
जँ एकहि पथ कें राही तूँ
जँ छोड़बाक छौ किछु पद-चिन्ह
त चल भीड़-भाड़ सँ बाहर तूँ
कान तूँ ! नै कान तूँ !!!!!!

:गणेश कुमार झा "बावरा"

गुवाहाटी


MAITHILI KAVYA: KAVITA

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