गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

लेख : मिथिलामे जाति-पाति

ई मात्र विडंबना कहु वा कोनो अभिशाप, जे राजनैतिक आजादी भेटलाक ६५ वर्ष बादो हम मिथिलाबासी अपन सोचकेँ जाति-पातिसँ ऊपर नै उठा पाबि रहल छी |
मात्र राजनैतिक आजादी ऐ कारणे जे राजनैतिक रूपसँ हम स्वतन्त्र छी परञ्च आर्थिक रूप सँ हम एखनो पराधीन छी | आर्थिक पराधीनता | अर्थात हम अपन इच्छानुसार खर्च नहि कय सकै छी, मने धनक अभाब | हमर मोन होइए अपन बच्चा कए कॉन्वेंट स्कूल मे पढाबी मुदा नहि पढ़ा सकै छी, इ थिक आर्थिक पराधीनता | हमर मोन होइए नीक मकान मे रही मुदा नहि किन सकै छी, इ थिक आर्थिक पराधीनता | हमर मोन होइए हमरो लग मोटर साईकिल, कार हुए, हमरो कनियाँ-बच्चा नीक कपड़ा पहिरथि मुदा नहि, इ थिक आर्थिक पराधीनता |
स्वाधीनता कए ६५ वर्ष बादो आर्थिक पराधीनता किएक ?
की हमरा लग बिद्या कम अछि ?
की हम कोनो राजनेता नहि बनेलहुँ ?
की हम प्राकृतिक रूपेण उपेक्षित छी ?
उपरोक्त सब बात गलती अछि | विद्या मे हम केकरो सँ कम नहि छी | राजनीती कए खेती अपने खेत मे होइए | प्राकृतिक कृपा अपन धरती पर पूर्ण रूपेण अछि |
तखन किएक ? किएक हम स्वाधीनता कए ६५ वर्ष बादो, आर्थिक पराधीनताक जीबन जिबैक लेल बेबस छी |
एखनो बच्चा कए चोकलेट नहि आनि हम कहैत छीयै, दाँत खराप भय जेतौ | कमी चोकलेट मे नहि, कमी हमर जेबी मे अछि |
आ इ आर्थिक पराधीनताक एक मात्र कारन अछि, हम मिथिला बासिक सोचब तरीका |आजुक युग मे जहिखन मनुख चान-तारा पर अपन पैर राखि चुकल अछि, हम मिथिलाबासी एखन तक जाति-पाति कए सोचि सँ ऊपर उठै हेतु तैयार नहि छी |
बाभन-सोलकन्ह कए नाम पर बिबाद | अगरा-पिछरा कए नाम पर बिबाद | ऊँच-नीच कए नाम पर बिबाद |
कोनो काज कए लय क आगु बढ़ू, जेकरा नापसन्द भेल, जाति-पाति कए नाम पर बबाल खड़ा कय देत | आ इ कोनो अशिक्षित नहि बहुत पढ़ल-लिखल वर्गों सँ नहि दूर भय रहल अछि | शिक्षित माननीयव्यक्ति सब चाहे कोनो जातिक हुअए, अपन-अपन जाति कए झंडा लय कऽ आगु आबि जाइत छथि |
यदि हम स्वयं व अपन मिथिला समाज कए विकसित व विकासशील देखए चाहै छी त जाति-पाति कए झंझट सँ निकलि क एक जुट भय आगु बढ़य परत |
एक संगे चलै मे मतभेद स्वभाबिक छै आ ओकरा दुर केनाई निदान्त आबश्यक छै |मुदा ओई मतभेद मे जाति कए बिच मे नहि आनि क व्यक्तिगत आलोचना, समालोचनाकरबाचाहि |
की कोनो गोट सफल व्यक्ति कए ओकर जाति कए नाम सँ जानल जाई छै ? नै, त सफलता कए सीढ़ी पर चलै लेल जाति-पातिक सहारा किएक |
इ जाति-पातिक रस्ता किछु मुठी भरि राजनेताक चालि छैन | हुनकर बात मानि त हम सब अपन विकास छोरि जाति-पाति मे लरैत रहि आ ओ दुस्त राज करैत हमरा सब कए सोधैत रहत |
लेख -जगदानंद झा 'मनु'
('विदेह' १०० म अंक १५ फरबरी २०१२, में प्रकाशित)

1 टिप्पणी:

  1. सही लिखा है आपने। हमें जाति-पाति से ऊपर उठ कर समाज के निर्माण में लगना चाहिए।

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