शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

तोरा बिन सब सून!


तोरा बिन सब सून!

ऊपर निला अम्बर, आइ कारी तों बनि जो!
घुमि-घुमि पूरा दुनिया तों एतय बरिस जो!!

ऐ जोड़ा बरद नव फार लागल हरो जोति जो!
अंघौश-मंघौश फेंकि खेत में तों चौकियो चलो!

गे अनमोलिया! गामवाली बारी सँ बिहैनो अनो!
संगमें दुइ-चारि बोनिहरनी के रोपनी लेल बजो!

रोपे मोंन सँ मिलि गाबि-गाबि जे शीश बड़ फरो!
हर अन्नमें जीवन धनके ईश आशीष कूटि भरो!

गेल दिन दस तँ आबि फेरो खेतो कमो - कमठो!
अर्जाल-खर्जाल सँ खेत भरत तऽ अन्न कि फरो!

प्रिय मेघा तों बस समय-समय एतबी के बरसो!
जे धान हमर खेतक लहरय हरियाली से चमको!

हे शीतल शीत तों शीशमें शशि-अमृत रसके भरो!
जे चरित मोरा तोरा मीत सन दुनिया के सुधरो!

रवि दिन-दिन बल ज्योति सँ शक्ति शुभ रंग भरो!
निज नयन जुड़य इ हेरि-हेरि हरियर हरि हर करो!

हेमन्त आबि के आश धरी स्वच्छन्द नभमें तरो!
गम-गम गमकय उमंग सँ बस एहने आश बंधो!

जौँ तोँ नहि तऽ हम कि - कि दुनिया वा किछुओ!
बस तोरहि सँ सभ जीव अछि आ जान भी जियो!

बिन कृषि कोनो नहि काज के सुर ताल बने कहियो!
भले आन किछु के बाद में समुचित दरकार बनो!

हरिः हरः!

रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें