सोमवार, 23 जनवरी 2012

गजल


टूटि-टूटि क' हम त' जोडाइत रहै छी।
मोनक विचार सुनि पतियाइत रहै छी।

गौरवे आन्हर पडल अपने घरारी,
सदिखन मुँह उठा क' अगधाइत रहै छी।

हाट मे प्रेमक खरीद करै सब किया,
बूझि नै, आब त' हम बिकाइत रहै छी।

फहरतै झंडा हमर सब दिस हवा मे,
एहि आसेँ खूब फहराइत रहै छी।

"ओम"क कपार पर कानि क' की करत ओ,
फूसियों हम ताकि औनाइत रहै छी।

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