शनिवार, 21 जनवरी 2012

शिव चतुर्दशी व्रत एवं पूजा

हिन्दू धर्माचरणमें उपवास उपासनाके एक मुख्य मार्ग थीक। आइ याने हिन्दू महीनाके माघ मास के कृष्ण चतुर्दशी - शिव चतुर्दशी - आजुक शुभ दिनक स्वामी शिव प्रति समर्पित विशेष पूजन-अर्चन-जप-तप-स्मरण-भजन-कीर्तन-श्रवण लेल अछि। ओना तऽ हरेक दिन के अपन विशेष महत्त्व छैक - हर क्षण मानव जीवनकेर अनमोल घड़ी छैक आ जे ज्ञानीजन छथि ओ एकहु पल लेल अपन ध्यान ईश्वरके परमसत्ता के सुखद छाया ‘शरणागतवत्सलके शरण’ सऽ अलग नहि रहैत छथि, परन्तु सहज साधना साधारण जनके केन्द्रमें राखि हिन्दू दर्शन अनुरूप मानल गेल छैक आ एहि अवसरपर साधक हेतु मनन योग्य इ लेख ईश्वरके ऐश्वर्यके स्वतंत्र खर्च मानैत अपने सभके लेल सुखद उपवास-उपासना लेल शुभकामना! 

आउ किछु मनन करी, किछु चर्चा करी - आजुक विशिष्टता के! :)

मिथिलाके परंपरानुसार माघ मास पुण्य लेल विशेष पूजा-आर्चा करैक विधान रहल अछि। मकर संक्रान्ति उपरान्त हरेक रविवार विशेषतः मकर मेला दिन - नजदीक के शिवमठ पर झुंड-के-झुंड बाल-बच्चा सऽ लऽ के वृद्ध-वृद्धा तक शिव-नचारी आ भजन-कीर्तन - नाम सुमिरन करैत पहुँचैत छथि। ओहि मठ पर पहुँचि स्नान-ध्यान करैत शिवलिंग पूजन करैत छथि। तदोपरान्त गाम-गामके लोक आपसमें मिलान, वैवाहिक चर्चा, कुटुम्बके कुशल-क्षेम बुझनाइ, माय-बेटी भेंट, सासुर-नैहर आ अनेको कार्य एहि मठ-मिलान सऽ सम्भव होइत आयल छैक। आध्यात्मके संग-संग सांसारिक गृहस्थाश्रम-वर्णाश्रम सोच आदि लेल सेहो माघ महीना के मकर-मेला के महत्त्व अत्यन्त सराहनीय मानल गेल छैक। कतेको नव-जोड़ीके वैवाहिक सम्बन्ध लेल कन्या निरीक्षण सेहो एहि समय संभव होइत छैक। किछु नाम हमरा लोकनिक बचपन सऽ अत्यन्त जुड़ल रहल अछि - जेना ऐहराइन, सुथरिया, औंक्शी, विदेश्वर, कुशेश्वर, सिंहेश्वर, भैरवस्थान, उगना महादेव, आदि। डेग-डेगपर मिथिलामें शिव-मन्दिर आ मठ के उपलब्ध रहब एहि महत्त्वके वजन के परिलक्षित करैत अछि। मिथिलामें औझका चतुर्दशीके नरक निवारण चतुर्दशीके रूपमें मनायल जाइछ। दिन-भैर विभिन्न मठ-मेला पर तीर्थयात्रा-धर्मयात्रा कैल जैछ आ संध्याकाल वैर फल सँ पारण कैल जैछ। तदोपरान्त एकछाकी व्रतधारी भोजन सेहो करैत छथि। जगह-जगह भजनके संगत देखल जा सकैत अछि। 

आजुक दिनके अन्यत्र सेहो महत्त्व उच्च अछि:

पुराण के अनुसार दिव्य ज्योर्तिलिंग (द्वादश ज्योतिर्लिंगके नाम: बैद्यनाथ, विश्वनाथ, रामेश्वर, नागेश्वर, श्रीसैलम, केदारनाथ, त्र्यंबकेश्वर, सोमनाथ, ओमकारेश्वर, महाकालेश्वर, भीमाशंकर आ घृष्णेश्वर) सभके प्राकट्य सेहो चतुर्दशी के राइत कहल गेल छैक। अतः आजुक एहि पुण्य तिथि पर संध्याकाल भगवान शिवके उपासनाक विशेष महत्व छैक आ एहि सांसारिक जीवन सँ जुड़ल तमाम सुख-शान्ति दियऽवाला मानल गेल अछि।

शास्त्र सभमें हर महीना के चतुर्दशी तिथि पर व्रत और शिव पूजा के विधि-विधान केर वर्णन भेटैछ। एहिमें पूजा उपरान्त जमीनपर शयन करैत समय विशेष शिव प्रार्थना के विधान सेहो वर्णन कैल गेल अछि, जाहिसँ शिव कृपा के संग हरेक सुखकेर प्राप्ति कहल गेल अछि।

आउ देखी, शिव चतुर्दशी दिन शिव पूजा विधि आ शिव प्रार्थना -


शिव चतुर्दशी व्रत एवं पूजाक शुभ फल हेतु त्रयोदशी दिन मात्र एक बार भोजन और चतुर्दशी के उपवास करी। आजुक दिन भोर आ सांझ भगवान् शंकर एवं भगवती पार्वती केँ पंचोपचार - गंध, अच्छत, बेलपात, धतुर, आ आकके फूल अर्पित करैत करी। यथाशक्ति शिव-पार्वतीजी संग सोना या चानीक बसहा बना के सेहो करी। शिव-स्तुति, मंत्र-जप आदि के बाद धूप आ दीप सँ शिवजीके आरती करी। तदोपरान्त सोन वा चानी के बसहा एवं जल-भरल कलशके दान कोनो सुपात्र-विद्वान्‌ ब्राह्मण के करी। आजुक व्रत आ पूजा केर विशेष नियम अनुरूप भक्त-साधक-उपासक खान-पानके संग अपन बोली-वचन-व्यवहार-आचरण में अनिवार्य रूपसँ पवित्रता राखथि। रात्रिकाल सुतय जाय सँ पहिने निम्न मंत्र द्वारा शिवजीकेँ प्रार्थना करी:


शंकराय नमस्तुभ्यं नमस्ते करवीरक।
त्र्यम्बकाय नमस्तुभ्यं महेश्वरमत: परम्।।
नमस्तेस्तु महादेव स्थावणे च तत: परम्।
नम: पशुपते नाथ नमस्ते शम्भवे नम:।।
नमस्ते परमानन्द नम: सोमर्धधारिणे।
नमो भीमाय चोग्राय त्वामहं शरणं गत:।।

(साभार: भास्कर पत्रिका)

आउ, आब आजुक एहि विशेष अवसरपर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भजन जे प्रेमीजी (पंचगछिया, सहरसा) रचना केने छथि - जिनक रचना आजुक समयमें बैद्यनाथधामके तीर्थयात्री बड़ा रसमय ढंग सऽ गबैत चलैत छथि, तेकर रसास्वादन कराबी।

दर्शन दियऽ दीन-दानी, बिहुँसिके! 
दर्शन दियऽ दीन-दानी! यौ दानी! - २

मिथिला सँ चलिके गंगाजल उठेलहुँ-२
अयलहुँ अहींके राजधानी, बिहुँसिके!
दर्शन दियऽ दीन-दानी! यौ दानी! - २

मनमें सेहन्ता अहींके निहारी - २
संगहि उमा-महारानी, बिहुँसिके!
दर्शन दियऽ दीन-दानी! यौ दानी! - २

हम नहि जायब अनकर दरबज्जा - २ 
किनको नञि कियो पहिचानी, बिहुँसिके!
दर्शन दियऽ दीन-दानी! यौ दानी! - २ 

हम छी बतहबा के चाकर बताहे - २ 
पूजो के विधि नहि जानी, बिहुँसिके!
दर्शन दियऽ दीन-दानी! यौ दानी! - २

अटले प्रतिज्ञा पर डटले रहब हम - २
चाहे जीवन भरि कानी, बिहुँसिके! :)
दर्शन दियऽ दीन दानी! यौ दानी! - २

सूतल छी धरती मनोरथ गगन में - २
‘प्रेमी’ के बुद्धि बचकानी, बिहुँसिके!
दर्शन दियऽ दीन दानी! यौ दानी!

धन्यवाद! सभ व्रतधारी-उपासक-भक्त-श्रवणकर्ता-पाठक-प्रशंसक एवं समस्त मानव समाजमें प्रवीण के तरफ सँ अभिवादन आ शुभकामना! 


नमः पार्वती पतये हर हर महादेव!

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