सोमवार, 12 दिसंबर 2011

गजल


अपने खोज मे अपन मोन हम धुनैत रहै छी।
छिडियैल मोती आत्माक सदिखन चुनैत रहै छी।

आनक की बनब, एखन धरि अपनहुँ नै भेलौं,
मोन मारि केँ सब गप पर आँखि मुनैत रहै छी।

कहियो भेंटबे करतै आत्माक गीत एहि प्राण मे,
छाउर भेल जिनगी केँ यैह सोचि खुनैत रहै छी।

झाँपै लेल भसियैल जिनगीक टूटल धरातल,
सपनाक नबका टाट भरि दिन बुनैत रहै छी।

बूझि सोहर-समदाउन जिनगीक सभ गीत केँ,
मोन-मगन भेल अपने मे, हम सुनैत रहै छी।
---------------- वर्ण १९ ----------------

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