मंगलवार, 15 नवंबर 2011

आएल पानी गेल पानी..

आएल पानी गेल पानीबाटही बिलाएल पानी
मेघक अछि खेल इ

लेनही पडायल पानी !


धरती पियाशल आ
धिपल आकाश अछि
बुत्रक बाजार लुटी
बाटही शुखायल पानी !

घास पात सरकैत
बारकैए खेत खेत
नदी नाला पोखरी में
लागाए हेराएल पानी!

धरती केर कोखी सोखी
कयलहूँ पटौनी
भाफ बनल उडल सकल
घर घर बटायल पानी !

गंगा आ यामुनके
भरल गदौस स
कोशिक किछेर तोड़ी
भागल छेकयल पानी !
आएल पानी गेल पानीबाटही बिलाएल पानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. लोक भाषा का अपना रास रंग मिजाज़ है धड़कन है शिद्दत से महसूस हुआ .

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  2. बहुत बढ़िया लगा ! बेहतरीन प्रस्तुती!

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