शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

उद्वोधन

कहियो पूर्णिमा सन आलोकित,
मैथिल, मिथिला आ
मैथिली,
घोर अन्हरियामे हराओल अ,
किछ दूर
टिमटिमाइत तारा सन,
किछ मिटैल पगडण्डी,
रि-धुरिमे ओझराल अ,
सभ्यातक सूर्य,
कहिया परिचयके
बदलि देलक,
किछ आभासो नै भेल,
मुदा !
जहन-जहन पा
छू तकैत छी,
ह्रदयमे कि
छु उथल-पुथल,
बहरा
लेल व्याकुल अ,
मुदा !
भीतरे-भीतर घु
टि जाइत अ,
स्व
च्छन्दता- स्वतंत्रता नै अ,
अपन अहंग,
सैहबी डोरीमे ब
न्हाए,
जाबी लगौने,
बरद जका
ऑफिसक दाउनमे लागल छी,
अपन सहजता-सरलतास
डेराइ,
जे पाछू नै भ जा ,
अपन परिचयस
भगैत,
नव परिचय बना
बैमे लागल छी,
मुदा !
ओ स्वर्णिम गौरव गाथा,
कोना लिखब,
माता-पिता आ
पूर्वजक प्रति श्रद्धा बिनु,
भा
षाक प्रेम सिनेह बिनु,
कोन रंगस
रंगब
अपन कैनवासके
…..
कोन गीतस
सजैब
अपन जीवनके ……
मुदा !
हम सुतल नै
छी,
मरल नै
छी,
जागल
छी,
हमर अल्हड़ता, हमर सहजता,
हमर नम्रता
हमर परिचय अ,
सभ्यातक आलोकस
आलोकित,
आब हम समर्थवान छी,
किक ने अपन समृद्धि,
अपन परिचयके
सींची,
अतीत त
स्वर्णिम छल,
आब आ
आ आबैबला काल्हि,
के
सेहो स्वर्णिम बनाबी,
गोटे मिली कऽ,
एक दोसरके
मैथिलीक रपान कराबी.

pankajjha23@gmail.com
http://pankajjha23.blogspot.com/

2 टिप्‍पणियां:

  1. bahut nik pankaj ji

    हमर अल्हड़ता, हमर सहजता, हमर नम्रता
    हमर परिचय अइ,
    सभ्यातक आलोकसँ आलोकित,
    आइ आब हम समर्थवान छी,

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  2. @धन्यवाद मदन जी, आब समय के संग चलैत ज्ञान, विज्ञान आ तकनीकक प्रयोग कै सब गोटे मिली क मैथिल मिथिला मैथिलीक लेल किछ निक करी येह प्रार्थना अई ईश्वर स ....

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