रविवार, 14 नवंबर 2010

एकटा त ओ छलीह

एकटा तऽ ओ छलीह।

कनैत छलहूॅं माए गे माए-बाप रौ बाप
हे रौ नंगट छौंड़ा रह ने चुपचाप
नूनू बाबू कऽ ओ हमरा चुप करा दैत छलीह
एकटा तऽ ओ छलीह।

बापे-पूते के कनैत छलहूॅं कखनो तऽ
ओ हमरा दूध-भात खुआ दैत छलीह
बौआक मूहॅं मे घुटूर-घुटूर कहि ओ
अपन ऑंखिक नोर पोछि हमरा हॅसबैत छलीह।

खूम कनैत-कनैत केखनो हम बजैत छलहूॅं
माए गे हम कोइली बनि जेबउ
नहि रे बौआ निक मनुक्ख बनि जो ने
आओर कोइली सन बोल सभ के सुनो ने।

केखनो किछू फुरायत छल केखनो किछू
नाटक मे जोकर बनि बजैत छलहूॅं बुरहिया फूसि
मुदा तइयो ओ हॅंसि कऽ बजैत छलीह
किछू नव सीखबाक प्रयास आओर बेसी करी।

रूसि कऽ मुहॅं फुला लैत छलहूॅं
तऽ ओ हमरा नेहोरा कऽ मनबैत छलीह
कतो रही रे बाबू मुदा मातृभाषा मे बजैत रही
अपना कोरा मे बैसा ओ एतबाक तऽ सीखबैथि छलीह।





मातृभाषाक प्रति अपार स्नेह गाम आबि
नान्हि टा मे हुनके सॅं हम सिखलहूॅं
गाम छोड़ि परदेश मे बसि गेलहूॅं
मुदा मैथिलीक मिठगर गप नहि बिसरलहूॅं।

अवस्था भेलाक बाद ओ तऽ चलि गेलीह ओतए
जतए सॅं कहियो ओ घूमि कऽ नहि औतीह
मुदा माएक फोटो देखि बाप-बाप कनैत छी
मोन मे एकटा आस लगेने जे कहियो तऽ बुरहिया औतीह।

समाजक लोक बुझौलनि नहि नोर बहाउ औ बौआ
बुरहिया छेबे नहि करैथि एहि दुनियॉं मे
तऽ कि आब ओ अपना नैहर सॅं घूरि कऽ औतीह
मरैयो बेर मे बुरहिया अहॉं कें मनुक्ख बना दए गेलीह।

बुरहियाक मूइलाक बाद आब मइटूगर भए गेल किशन’
ओई बुरहिया के हम करैत छी नमन
अपन विपैत केकरा सॅं कहू औ बौआ
कियो आन नहि ओ बुरहिया तऽ हमर माए छलीह।


लेखक:- किशन कारीग़र


परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।

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