शनिवार, 11 सितंबर 2010

कनिक हंसिय लिय

                      मक्षर चालीस

   

                            दोहा

अति आबस्यक जानी के होके अति लचार ,
बरनो मच्छर सक्‍ल गुणों दुख दायक ब्यबहार ।


बिना मसहरि दिन हूँ सुनहू सकल नर्रनार ,
मक्ष्छर चलिसा लिखक पढ़उ सोइच बिचैर ।।

                चोपाई
जय मच्छर भगवान उजागर ।
जय अनगिनित हे रोग के सागर ।।
नदियाँ पोखैर गंगा सागर ।
बठाम रहते छी अही उजा गर ।।
नीम हकिम के अही रखबारे ।
डाक्टर के भेलो अतिश्य प्यारे ।।
मलेरिया के छी अहा दाता ।
डेंगू के ची  भाग्यबिधता  ,
छी खटमल के प्यारे भ्राता ।।

जरी बुट्टी से काज नऽ बनल ।
अंग्रेजी दबाइ जलदी फीट करल ।।
आउल आउट गुडनाइर्ट अपनेलो ।
फेर अपन अहा जान बचेलो ।।
दिन दुखि सब धुप में जरैत छैथ ।
रैतो में बेचैन रहैत छैथ ।।
संझ – भोर अहा राग सुनाबी ।
गूं गूं के नाम कमाबी ।।
राजा छैथ या रंक फकिरा ।
सब के केलो अपनेही मत धिरा ।।
रूप कुरूप न अहा मानलो ।
छोटका - बऱका नै अहा जनलो ।।
नर छैथ या स्वर्गाक नारी ।
सब के समक्ष बनलो अहा भारी।।
भिन्न भिन्न जे रोग सुनेला ।
डाकटर कुमार फेर शर्मेला ।।
सब दफ्‍तर में आदर पेलो ।
बिना इजाजत के अहा घुस गेलो ।।
चाट परल जिन्गी से गेलो ।
कनैत खिजैत परिवार गमलो ।।
जय - जय हे मक्ष्छर भगवाना ।
माफ करू सबटा जुर्माना ।।
छी अहा नाथ साथ हम चेरा ।
जल्दी उजारारू अहा अपनेही डेरा ।।

                    दोहा
निश बंसर शंकर करण मालिन महा अति कुर |
अपन दल बल सहित बशु कहि जा दुर ||
लेखक ----
मदन कुमार ठाकुर
पट्टीटोल (कोठिया), भैरव स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार ,८४७४०४


  तरुवाक पंच तिलकोर


भिन्डी - भिनभिनायत भिन्डी के तरुवा,
आगू आ ने रौ मुह जरूवा ,
हमरा बिनु उदाश अछि थारी ,
करगर तरुवा रसगर तरकारी !
कदीमा - गै भिन्डी तू चुप्पहि रह ,
अहि स आगू किछु नही कह!
लस - लस तरुवा फचफच झोर ,
नामे सुनते खसतौ नोर !
खेत जे से खोदत दात,
 देखितही तोरा सिकुर्ल नाक
हम कदीमा नम्हर मोट ,
भगले नही तऽ कटबौ झोट!!
   फर -देखिते तोरा मोन ओकायल,
बाहर निस्सन तड फोकायल!
हम्मर तरुवा भाग्य सऽ भेटतौ ,
मारि लिखल छौ से के मेटतौ !
पकरू खंती बरी जाऊ ,
झटपट कोरी कऽ हमरा लाऊ !

समधी एला चाहे बर ,
माटी तर सऽ बाजल फर !!
आलू - जमा देबौ हम थप्पड़ तरतर ,
केलहिन के सब हमर परतर!
छ जऽ मर्दक बेटा तऽ,
आबी कऽ बनी लंगोटा तऽ !
की बजैत छऽ माटी तर सऽ ,
बजैय जेना जनाना घर सऽ !
हमरे पर यऽ दुनिया राजी ,
आब जऽ बजले बनबौ जाबि!
हमर तरुवा लाजबाब ,
नाम हमर य लाल गुलाब !!
परबल - बहुत दूर सऽ आबी रहल छि ,
ताहि हेत भ गेलौ लेट !
हमर तरुवा सेठ खायत य ,
ताहि हेत नमरल छनी पेट !
 दू फाक क भैर मशाला,
दियौ तेल नही गर्बर झाला !
दाली भात पर चटपट खाऊ ,
भेल देर ऑफ़ीस चली जाऊ !!
फुलकोबी - फुलकोबी के खुजल कान,
हमरे पर छह एतेक शान !
हमर तरुवा हौय छै अजीब,
ककरो -ककरो भेल नसीब !!
तिलकोर - सुनी हल्ला तिलकोर पंच,
हाथ जोरी कऽ बैसला मंच !
सुंदर नाम हमर तिलकोर ,
हमरा लतिक ओर नै छोर !
भेटी बिना मूल्य आ दाम,
मिथिला भरी पसरल अछि नाम !
हमरा चाही मिथिला राज्य ,
तय दिन राती करैत छि काज !!

धन्यबाद
गीतकार - मुकेश मिश्रा ,९९९०३७९४४९
        

    आमक  झगरा

कलकत्ता स आयल छि, अछि नाम कलकतिया,

आम बिच में नाम केने छि, फरलहू पथिया के पथिया!
हमरा आगा कुन आम छै कनिये बरी क आ आगा ,
मारबौ फोरसा घिचबौ चरसा गाम स देबौ भगा !!
सुनी बरबरीया घिचलक सरिया रौ कलकतिया भाग ,
जान नै बचतौ मारल जेमा ,गेलौ सौसे गाछी जाइग !
रति बीराइत क तारी पीबक नही कर एतेक शोर ,
जतेक कहलियो ततबे सुन नही त डेंगेबौ तारमतोर !
कृष्णभोग के खुजल नींद ,के करैत अछि एतेक हल्ला
नही बुझैत अछि रति आ दिन,भ जेतव आब ढोरही ढिल्ला
केरबा-फैजली दुनु आब कैस क बनलक फार
आब कियो ज बजला बैआ,तोरी देबी हम डार!
बाप रै बाप के हल्ला सुनी क दौरल आब सपेता ,
हाथ में लाठी माथ मुरेठा ,कसने अपन लंगोटा!
बमबैयो क नै रहल गेलै,ओहो धेलक तान
हमरा जे एक बेर खाय य बढ़ाई छाई ओकर शान !
सब आम मिल के बजल जय जय बमबई की
अहू सब कहियो जय बमबई की
लेखक ---
गीतकार - मुकेश मिश्रा
9990379449

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